चाँद इस घर के दरीचों के बराबर आया / अहमद मुश्ताक़

चाँद इस घर के दरीचों के बराबर आया दिल-ए-मुश्ताक़ ठहर जा वही मंज़र आया मैं बहुत ख़ुश था कड़ी धूप के सन्नाटे में क्यूँ तेरी याद का बादल मेरे सर पर आया बुझ गई रौनक़-ए-परवाना तो महफ़िल चमकी सो गए अहल-ए-तमन्ना तो सितम-गर आया यार सब जम्मा हुए रात की ख़ामोशी में कोई रो कर… Continue reading चाँद इस घर के दरीचों के बराबर आया / अहमद मुश्ताक़

अब वो गलियाँ वो मकाँ याद नहीं / अहमद मुश्ताक़

अब वो गलियाँ वो मकाँ याद नहीं कौन रहता था कहाँ याद नहीं जलवा-ए-हुस्न-ए-अज़ल थे वो दयार जिन के अब नाम ओ निशाँ याद नहीं कोई उजला सा भला सा घर था किस को देखा था वहाँ याद नहीं याद है ज़ीन-ए-पेचाँ उस का दर-ओ-दीवार-ए-मकाँ याद नहीं याद है ज़मज़मा-ए-साज़-ए-बहार शोर-ए-आवाज़-ए-ख़िज़ाँ याद नहीं

अब मंज़िल-ए-सदा से सफ़र कर / अहमद मुश्ताक़

अब मंज़िल-ए-सदा से सफ़र कर रहे हैं हम यानी दिल-ए-सुकूत में घर कर रहे हैं हम खोया है कुछ ज़रूर जो उस की तलाश में हर चीज़ को इधर से उधर कर रहे हैं हम गोया ज़मीन कम थी तग-ओ-ताज़ के लिए पैमाइश-ए-नुजूम-ओ-क़मर कर रहे हैं हम काफ़ी न था जमाल-ए-रुख़-ए-साद-ए-बहार ज़ेबाइश-ए-गियाह-ओ-शजर कर रहे हैं… Continue reading अब मंज़िल-ए-सदा से सफ़र कर / अहमद मुश्ताक़