ये तंहा रात ये गहरी फ़ज़ाएँ / अहमद मुश्ताक़

ये तंहा रात ये गहरी फ़ज़ाएँ उसे ढूँढे के इस को भूल जाएँ ख़यालों की घनी ख़ामोशियों में घुली जाती हैं लफ़्ज़ों की सदाए ये रस्ते रह-रवों से भागते हैं यहाँ छुप छुप के चलती हैं हवाएँ ये पानी ख़ामोशी से बह रहा है इसे देखें के इस में डूब जाएँ जो ग़म जलते हैं… Continue reading ये तंहा रात ये गहरी फ़ज़ाएँ / अहमद मुश्ताक़

ये कहना तो नहीं काफ़ी के बस प्यारे लगे / अहमद मुश्ताक़

ये कहना तो नहीं काफ़ी के बस प्यारे लगे हम को उन्हें कैसे बताएँ हम के वो कैसे लगे हम को मकीं थे या किसी खोई हुई जन्नत की तसवीरें मकाँ इस शहर के भूले हुए सपने लगे हम को हम उन को सोच में गुम देख कर वापस पलट आए वो अपने ध्यान में… Continue reading ये कहना तो नहीं काफ़ी के बस प्यारे लगे / अहमद मुश्ताक़

तुम आए हो तुम्हें भी आज़मा कर देख लेता हूँ / अहमद मुश्ताक़

तुम आए हो तुम्हें भी आज़मा कर देख लेता हूँ तुम्हारे साथ भी कुछ दूर जा कर देख लेता हूँ हवाएँ जिन की आँधी खिड़कियों पर सर पटकती हैं मैं उन कमरों में फिर शमएँ जला कर देख लेता हूँ अजब क्या इस क़रीने से कोई सूरत निकल आए तेरी बातों को ख़्वाबों से मिला… Continue reading तुम आए हो तुम्हें भी आज़मा कर देख लेता हूँ / अहमद मुश्ताक़

थम गया दर्द उजाला हुआ तन्हाई में / अहमद मुश्ताक़

थम गया दर्द उजाला हुआ तन्हाई में बर्क़ चमकी है कहीं रात की गहराई में बाग़ का बाग़ लहू रंग हुआ जाता है वक़्त मसरूफ़ है कैसी चमन-आराई में शहर वीरान हुए बहर बया-बाँ हुए ख़ाक उड़ती है दर ओ दश्त की पहनाई में एक लम्हे में बिखर जाता है ताना-बाना और फिर उम्र गुज़र… Continue reading थम गया दर्द उजाला हुआ तन्हाई में / अहमद मुश्ताक़

मिल ही जाएगा कभी दिल को यक़ीं रहता है / अहमद मुश्ताक़

मिल ही जाएगा कभी दिल को यक़ीं रहता है वो इसी शहर की गलियों में कहीं रहता है जिस की साँसों से महकते थे दर-ओ-बाम तेरे ऐ मकाँ बोल कहाँ अब वो मकीं रहता हैं इक ज़माना था कि सब एक जगह रहते थे और अब कोई कहीं कोई कहीं रहता है रोज़ मिलने पे… Continue reading मिल ही जाएगा कभी दिल को यक़ीं रहता है / अहमद मुश्ताक़

मलाल-ए-दिल से इलाज-ए-ग़म-ए-ज़माना / अहमद मुश्ताक़

मलाल-ए-दिल से इलाज-ए-ग़म-ए-ज़माना किया ज़िया-ए-मेहर से रौशन चराग़-ए-ख़ाना किया सहर हुई तो वो आए लटों को छटकाते ज़रा ख़याल-ए-परेशानी-ए-सबा न किया हज़ार शुक्र के हम मसलहत-शनास न थे के हम ने जिस से क्या इश्क़ वालेहाना किया वो जिस के लुत्फ़ में बेगानगी भी शामिल थी उसी ने आज गुज़र दिल से महरमाना किया वो… Continue reading मलाल-ए-दिल से इलाज-ए-ग़म-ए-ज़माना / अहमद मुश्ताक़

लुभाता है अगरचे हुस्न-ए-दरिया डर रहा हूँ मैं / अहमद मुश्ताक़

लुभाता है अगरचे हुस्न-ए-दरिया डर रहा हूँ मैं सबब ये है के इक मुद्दत किनारे पर रहा हूँ मैं ये झोंके जिन से दिल में ताज़गी आँखों में ठण्डक है इन्ही झोंकों से मुरझाया हुआ शब भर रहा हूँ मैं तेरे आने का दिन है तेरे रस्ते में बिछाने को चमकती धूप में साए इकट्ठे… Continue reading लुभाता है अगरचे हुस्न-ए-दरिया डर रहा हूँ मैं / अहमद मुश्ताक़

किसी शय पे यहाँ वक़्त का साया नहीं होता / अहमद मुश्ताक़

किसी शय पे यहाँ वक़्त का साया नहीं होता इक ख़्वाब-ए-मोहब्बत है के बूढ़ा नहीं होता वो वक़्त भी आता है जब आँखों में हमारी फिरती हैं वो शक्लें जिन्हें देखा नहीं होता बारिश वो बरसती है के भर जाते हैं जल-थल देखो तो कहीं अब्र का टुकड़ा नहीं होता घिर जाता है दिल दर्द… Continue reading किसी शय पे यहाँ वक़्त का साया नहीं होता / अहमद मुश्ताक़

ख़ैर औरों ने भी चाहा तो है तुझ सा होना / अहमद मुश्ताक़

ख़ैर औरों ने भी चाहा तो है तुझ सा होना ये अलग बात के मुमकिन नहीं ऐसा होना देखता और न ठहरता तो कोई बात भी थी जिस ने देखा ही नही उस से ख़फ़ा क्या होना तुझ से दूरी में भी ख़ुश रहता हूँ पहले की तरह बस किसी वक़्त बुरा लगता है तन्हा… Continue reading ख़ैर औरों ने भी चाहा तो है तुझ सा होना / अहमद मुश्ताक़

खड़े हैं दिल में जो बर्ग-ओ-समर लगाए हुए / अहमद मुश्ताक़

खड़े हैं दिल में जो बर्ग-ओ-समर लगाए हुए तुम्हारे हाथ के हैं ये शजर लगाए हुए बहुत उदास हो तुम और मैं भी बैठा हूँ गए दिनों की कमर से कमर लगाए हुए अभी सिपाह-ए-सितम ख़ेमा-ज़न है चार तरफ़ अभी पड़े रहो ज़ंजीर-ए-दर लगाए हुए कहाँ कहाँ न गए आलम-ए-ख़याल में हम नज़र किसी के… Continue reading खड़े हैं दिल में जो बर्ग-ओ-समर लगाए हुए / अहमद मुश्ताक़