काँटा सा जो चुभा था / ‘अदा’ ज़ाफ़री

काँटा सा जो चुभा था वो लौ दे गया है क्या घुलता हुआ लहू में ये ख़ुर्शीद सा है क्या पलकों के बीच सारे उजाले सिमट गए साया न साथ दे ये वही मरहला है क्या मैं आँधियों के पास तलाश-ए-सबा में हूँ तुम मुझ से पूछते हो मेरा हौसला है क्या साग़र हूँ और… Continue reading काँटा सा जो चुभा था / ‘अदा’ ज़ाफ़री

जो चराग़ सारे बुझा चुके उन्हें इंतिज़ार कहाँ रहा / ‘अदा’ ज़ाफ़री

जो चराग़ सारे बुझा चुके उन्हें इंतिज़ार कहाँ रहा ये सुकूँ का दौर-ए-शदीद है कोई बे-क़रार कहाँ रहा जो दुआ को हाथ उठाए भी तो मुराद याद न आ सकी किसी कारवाँ का जो ज़िक्र था वो पस-ए-ग़ुबार कहाँ रहा ये तुलू-ए-रोज़-ए-मलाल है सो गिला भी किस से करेंगे हम कोई दिल-रुबा कोई दिल-शिकन कोई… Continue reading जो चराग़ सारे बुझा चुके उन्हें इंतिज़ार कहाँ रहा / ‘अदा’ ज़ाफ़री

हर इक दरीचा किरन किरन है / ‘अदा’ ज़ाफ़री

हर इक दरीचा किरन किरन है जहाँ से गुज़रे जिधर गए हैं हम इक दिया आरज़ू का ले कर ब-तर्ज़-ए-शम्स-ओ-क़मर गए हैं जो मेरी पलकों से थम न पाए वो शबनमीं मेहर-बाँ उजाले तुम्हारी आँखों में आ गए तो तमाम रस्ते निखर गए हैं वो दूर कब था हरीम-ए-जाँ से के लफ़्ज़ ओ मानी के… Continue reading हर इक दरीचा किरन किरन है / ‘अदा’ ज़ाफ़री

हर गाम सँभल सँभल रही थी / ‘अदा’ ज़ाफ़री

हर गाम सँभल सँभल रही थी यादों के भँवर में चल रही थी साँचे में ख़बर के ढल रही थी इक ख़्वाब की लौ से जल रही थी शबनम सी लगी जो देखने मैं पत्थर की तरह पिघल रही थी रूदाद सफ़र की पूछते हो मैं ख़्वाब में जैसे चल रही थी कैफ़ियत-ए-इंतिज़ार-ए-पैहम है आज… Continue reading हर गाम सँभल सँभल रही थी / ‘अदा’ ज़ाफ़री

हाल खुलता नहीं जबीनों से / ‘अदा’ ज़ाफ़री

हाल खुलता नहीं जबीनों से रंज उठाए हैं जिन क़रीनों से रात आहिस्ता-गाम उतरी है दर्द के माहताब ज़ीनों से हम ने सोचा न उस ने जाना है दिल भी होते हैं आब-गीनों से कौन लेगा शरार-ए-जाँ का हिसाब दस्त-ए-इमरोज़ के दफ़ीनों से तू ने मिज़गाँ उठा के देखा भी शहर ख़ाली न था मकीनों… Continue reading हाल खुलता नहीं जबीनों से / ‘अदा’ ज़ाफ़री

गुलों सी गुफ़्तुगू करें / ‘अदा’ ज़ाफ़री

गुलों सी गुफ़्तुगू करें क़यामतों के दरमियाँ हम ऐसे लोग अब मिलें हिकायतों के दरमियाँ लहू-लुहान उँगलियाँ हैं और चुप खड़ी हूँ मैं गुल ओ समन की बे-पनाह चाहतों के दरमियाँ हथेलियों की ओट ही चराग़ ले चलूँ अभी अभी सहर का ज़िक्र है रिवायतों के दरमियाँ जो दिल में थी निगाह सी निगाह में… Continue reading गुलों सी गुफ़्तुगू करें / ‘अदा’ ज़ाफ़री

गुलों को छू के शमीम-ए-दुआ / ‘अदा’ ज़ाफ़री

गुलों को छू के शमीम-ए-दुआ नहीं आई खुला हुआ था दरीचा सबा नहीं आई हवा-ए-दश्त अभी तो जुनूँ का मौसम था कहाँ थे हम तेरी आवाज़-ए-पा नहीं आई अभी सहीफ़ा-ए-जाँ पर रक़म भी क्या होगा अभी तो याद भी बे-साख़्ता नहीं आई हम इतनी दूर कहाँ थे के फिर पलट न सकें सवाद-ए-शहर से कोई… Continue reading गुलों को छू के शमीम-ए-दुआ / ‘अदा’ ज़ाफ़री

घर का रस्ता भी मिला था शायद / ‘अदा’ ज़ाफ़री

घर का रस्ता भी मिला था शायद राह में संग-ए-वफ़ा था शायद इस क़दर तेज़ हवा के झोंके शाख़ पर फूल खिला था शायद जिस की बातों के फ़साने लिक्खे उस ने तो कुछ न कहा था शायद लोग बे-मेहर न होते होंगे वहम सा दिल को हुआ था शायद तुझ को भूले तो दुआ… Continue reading घर का रस्ता भी मिला था शायद / ‘अदा’ ज़ाफ़री

दीप था या तारा क्या जाने / ‘अदा’ ज़ाफ़री

दीप था या तारा क्या जाने दिल में क्यूँ डूबा क्या जाने गुल पर क्या कुछ बीत गई है अलबेला झोंका क्या जाने आस की मैली चादर ओढ़े वो भी था मुझ सा क्या जाने रीत भी अपनी रुत भी अपनी दिल रस्म-ए-दुनिया क्या जाने उँगली थाम के चलने वाला नगरी का रस्ता क्या जाने… Continue reading दीप था या तारा क्या जाने / ‘अदा’ ज़ाफ़री

अचानक दिल-रुबा मौसम का / ‘अदा’ ज़ाफ़री

अचानक दिल-रुबा मौसम का दिल-आज़ार हो जाना दुआ आसाँ नहीं रहना सुख़न दुश्वार हो जाना तुम्हें देखें निगाहें और तुम को ही नहीं देखें मोहब्बत के सभी रिश्तों का यूँ नादार हो जाना अभी तो बे-नियाज़ी में तख़ातुब की सी ख़ुश-बू थी हमें अच्छा लगा था दर्द का दिल-दार हो जाना अगर सच इतना ज़ालिम… Continue reading अचानक दिल-रुबा मौसम का / ‘अदा’ ज़ाफ़री