मैं ने देखा, एक बूँद / अज्ञेय

मैं ने देखा एक बूँद सहसा उछली सागर के झाग से; रंग गई क्षणभर, ढलते सूरज की आग से। मुझ को दीख गया: सूने विराट् के सम्‍मुख हर आलोक-छुआ अपनापन है उन्‍मोचन नश्‍वरता के दाग से!

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सारस अकेले / अज्ञेय

घिर रही है साँझ हो रहा है समय घर कर ले उदासी तौल अपने पंख, सारस दूर के इस देश में तू है प्रवासी! रात! तारे हों न हों रव हीनता को सघनतर कर दे अंधेरा तू अदीन! लिये हिय में चित्र ज्योति प्रदेश का करना जहाँ तुझको सवेरा! थिर गयी जो लहर, वह सो… Continue reading सारस अकेले / अज्ञेय

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शरद / अज्ञेय

सिमट गयी फिर नदी, सिमटने में चमक आयी गगन के बदन में फिर नयी एक दमक आयी दीप कोजागरी बाले कि फिर आवें वियोगी सब ढोलकों से उछाह और उमंग की गमक आयी बादलों के चुम्बनों से खिल अयानी हरियाली शरद की धूप में नहा-निखर कर हो गयी है मतवाली झुंड कीरों के अनेकों फबतियाँ… Continue reading शरद / अज्ञेय

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वसंत आ गया / अज्ञेय

मलयज का झोंका बुला गया खेलते से स्पर्श से रोम रोम को कंपा गया जागो जागो जागो सखि़ वसन्त आ गया जागो पीपल की सूखी खाल स्निग्ध हो चली सिरिस ने रेशम से वेणी बाँध ली नीम के भी बौर में मिठास देख हँस उठी है कचनार की कली टेसुओं की आरती सजा के बन… Continue reading वसंत आ गया / अज्ञेय

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वन झरने की धार / अज्ञेय

मुड़ी डगर मैं ठिठक गया वन-झरने की धार साल के पत्ते पर से झरती रही मैने हाथ पसार दिये वह शीतलता चमकीली मेरी अंजुरी भरती रही गिरती बिखरती एक कलकल करती रही भूल गया मैं क्लांति, तृषा, अवसाद, याद बस एक हर रोम में सिहरती रही लोच भरी एडि़याँ लहराती तुम्हारी चाल के संग-संग मेरी… Continue reading वन झरने की धार / अज्ञेय

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यह दीप अकेला / अज्ञेय

यह दीप अकेला स्नेह भरा है गर्व भरा मदमाता पर इसको भी पंक्ति को दे दो यह जन है : गाता गीत जिन्हें फिर और कौन गायेगा पनडुब्बा : ये मोती सच्चे फिर कौन कृति लायेगा? यह समिधा : ऐसी आग हठीला बिरला सुलगायेगा यह अद्वितीय : यह मेरा : यह मैं स्वयं विसर्जित :… Continue reading यह दीप अकेला / अज्ञेय

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सर्जना के क्षण / अज्ञेय

एक क्षण भर और रहने दो मुझे अभिभूत फिर जहाँ मैने संजो कर और भी सब रखी हैं ज्योति शिखायें वहीं तुम भी चली जाना शांत तेजोरूप! एक क्षण भर और लम्बे सर्जना के क्षण कभी भी हो नहीं सकते! बूँद स्वाती की भले हो बेधती है मर्म सीपी का उसी निर्मम त्वरा से वज्र… Continue reading सर्जना के क्षण / अज्ञेय

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हँसती रहने देना / अज्ञेय

जब आवे दिन तब देह बुझे या टूटे इन आँखों को हँसती रहने देना! हाथों ने बहुत अनर्थ किये पग ठौर-कुठौर चले मन के आगे भी खोटे लक्ष्य रहे वाणी ने (जाने अनजाने) सौ झूठ कहे पर आँखों ने हार, दुःख, अवसान, मृत्यु का अंधकार भी देखा तो सच-सच देखा इस पार उन्हें जब आवे… Continue reading हँसती रहने देना / अज्ञेय

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उड़ चल हारिल / अज्ञेय

उड़ चल हारिल लिये हाथ में यही अकेला ओछा तिनका उषा जाग उठी प्राची में कैसी बाट, भरोसा किन का! शक्ति रहे तेरे हाथों में छूट न जाय यह चाह सृजन की शक्ति रहे तेरे हाथों में रुक न जाय यह गति जीवन की! ऊपर ऊपर ऊपर ऊपर बढ़ा चीर चल दिग्मण्डल अनथक पंखों की… Continue reading उड़ चल हारिल / अज्ञेय

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ये मेघ साहसिक सैलानी / अज्ञेय

ये मेघ साहसिक सैलानी! ये तरल वाष्प से लदे हुए द्रुत साँसों से लालसा भरे ये ढीठ समीरण के झोंके कंटकित हुए रोएं तन के किन अदृश करों से आलोड़ित स्मृति शेफाली के फूल झरे! झर झर झर झर अप्रतिहत स्वर जीवन की गति आनी-जानी! झर – नदी कूल के झर नरसल झर – उमड़ा… Continue reading ये मेघ साहसिक सैलानी / अज्ञेय

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