दोहा / भाग 2 / हरिप्रसाद द्विवेदी
कूकरु उदरु खलाय कैं, घर घर चाँटत चून। रहो रहत सद खून सों, नित नाहर नाखून।।11।। पैरि पार असि धार कै, नाखि युद्ध नर मीर। भेदि भानु मण्डलहिं अब, चल्यौ कहाँ रणधीर।।12।। औसरू आवत प्रान पै, खेलि जाय गहि टेक। …