ऐ दोस्त कहीं तुझ पे भी इल्ज़ाम न आए इस मेरी तबाही में तिरा नाम न आए ये दर्द है हम-दम उसी ज़ालिम की निशानी दे मुझ को दवा ऐसी कि आराम न आए काँधे पे उठाए हैं सितम राह-ए-वफा के शिकवा मुझे तुम से है कि दो-गाम न आए लगता है कि फैलेगी शब-ए-ग़म… Continue reading ऐ दोस्त कहीं तुझ पे भी इल्ज़ाम न आए / हकीम ‘नासिर’
Category: Hakim Nasir
आँखों ने हाल कह दिया होंट न फिर हिला सके / हकीम ‘नासिर’
आँखों ने हाल कह दिया होंट न फिर हिला सके दिल में हज़ार ज़ख्म थे जो न उन्हें दिखा सके घर में जो इक चराग़ था तुम ने उसे बुझा दिया कोई कभी चराग़ हम घर में न फिर जला सके शिकवा नहीं है अर्ज़ है मुमकिन अगर हो आप से दीजे मुझ को ग़म… Continue reading आँखों ने हाल कह दिया होंट न फिर हिला सके / हकीम ‘नासिर’