ये ठीक है कि तेरी गली में न आयें हम. लेकिन ये क्या कि शहर तेरा छोड़ जाएँ हम. मुद्दत हुई है कूए बुताँ की तरफ़ गए, आवारगी से दिल को कहाँ तक बचाएँ हम. शायद बकैदे-जीस्त ये साअत न आ सके तुम दास्ताने-शौक़ सुनो और सुनाएँ हम. उसके बगैर आज बहोत जी उदास है,… Continue reading ये ठीक है कि तेरी गली में न आयें हम / हबीब जालिब
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और सब भूल गए हर्फे-सदाक़त लिखना / हबीब जालिब
और सब भूल गए हर्फे-सदाक़त लिखना रह गया काम हमारा ही बगावत लिखना न सिले की न सताइश की तमन्ना हमको हक में लोगों के हमारी तो है आदत लिखना. हम ने तो भूलके भी शह का कसीदा न लिखा शायद आया इसी खूबी की बदौलत लिखना. दह्र के ग़म से हुआ रब्त तो हम… Continue reading और सब भूल गए हर्फे-सदाक़त लिखना / हबीब जालिब