तन की हवस / गोपालदास “नीरज”

तन की हवस मन को गुनाहगार बना देती है बाग के बाग़ को बीमार बना देती है भूखे पेटों को देशभक्ति सिखाने वालो भूख इन्सान को गद्दार बना देती है

आज मदहोश हुआ जाए रे / गोपालदास “नीरज”

आज मदहोश हुआ जाए रे, मेरा मन मेरा मन मेरा मन बिना ही बात मुस्कुराये रे , मेरा मन मेरा मन मेरा मन ओ री कली , सजा तू डोली ओ री लहर , पहना तू पायल ओ री नदी , दिखा तू दर्पण ओ री किरण ओढा तू आँचल इक जोगन हैं बनी आज… Continue reading आज मदहोश हुआ जाए रे / गोपालदास “नीरज”

तुम दीवाली बन कर / गोपालदास “नीरज”

तुम दीवाली बनकर जग का तम दूर करो, मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊंगा! सूनी है मांग निशा की चंदा उगा नहीं हर द्वार पड़ा खामोश सवेरा रूठ गया, है गगन विकल, आ गया सितारों का पतझर तम ऎसा है कि उजाले का दिल टूट गया, तुम जाओ घर-घर दीपक बनकर मुस्काओ मैं भाल-भाल पर… Continue reading तुम दीवाली बन कर / गोपालदास “नीरज”

अब तो मज़हब / गोपालदास “नीरज”

अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए। जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए। जिसकी ख़ुशबू से महक जाय पड़ोसी का भी घर फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए। आग बहती है यहाँ गंगा में झेलम में भी कोई बतलाए कहाँ जाके नहाया जाए। प्यार का ख़ून हुआ क्यों ये समझने के लिए… Continue reading अब तो मज़हब / गोपालदास “नीरज”

तिमिर ढलेगा / गोपालदास “नीरज”

मेरे देश उदास न हो, फिर दीप जलेगा, तिमिर ढलेगा! यह जो रात चुरा बैठी है चांद सितारों की तरुणाई, बस तब तक कर ले मनमानी जब तक कोई किरन न आई, खुलते ही पलकें फूलों की, बजते ही भ्रमरों की वंशी छिन्न-भिन्न होगी यह स्याही जैसे तेज धार से काई, तम के पांव नहीं… Continue reading तिमिर ढलेगा / गोपालदास “नीरज”

मेरा गीत दिया बन जाए / गोपालदास “नीरज”

अंधियारा जिससे शरमाये, उजियारा जिसको ललचाये, ऐसा दे दो दर्द मुझे तुम मेरा गीत दिया बन जाये! इतने छलको अश्रु थके हर राहगीर के चरण धो सकूं, इतना निर्धन करो कि हर दरवाजे पर सर्वस्व खो सकूं ऐसी पीर भरो प्राणों में नींद न आये जनम-जनम तक, इतनी सुध-बुध हरो कि सांवरिया खुद बांसुरिया बन… Continue reading मेरा गीत दिया बन जाए / गोपालदास “नीरज”

अंधियार ढल कर ही रहेगा / गोपालदास “नीरज”

अंधियार ढल कर ही रहेगा आंधियां चाहें उठाओ, बिजलियां चाहें गिराओ, जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा। रोशनी पूंजी नहीं है, जो तिजोरी में समाये, वह खिलौना भी न, जिसका दाम हर गाहक लगाये, वह पसीने की हंसी है, वह शहीदों की उमर है, जो नया सूरज उगाये जब तड़पकर तिलमिलाये,… Continue reading अंधियार ढल कर ही रहेगा / गोपालदास “नीरज”

धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ / गोपालदास “नीरज”

धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ दिये से मिटेगा न मन का अंधेरा धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ! बहुत बार आई-गई यह दिवाली मगर तम जहां था वहीं पर खड़ा है, बहुत बार लौ जल-बुझी पर अभी तक कफन रात का हर चमन पर पड़ा है, न फिर सूर्य रूठे, न फिर स्वप्न टूटे… Continue reading धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ / गोपालदास “नीरज”

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों / गोपालदास “नीरज”

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है। सपना क्या है, नयन सेज पर सोया हुआ आँख का पानी और टूटना है उसका ज्यों जागे कच्ची नींद जवानी गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं… Continue reading छिप-छिप अश्रु बहाने वालों / गोपालदास “नीरज”

कारवां गुज़र गया / गोपालदास “नीरज”

स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से, लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से, और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे! नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई, पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई, पात-पात झर गये कि शाख़-शाख़ जल गई, चाह तो… Continue reading कारवां गुज़र गया / गोपालदास “नीरज”