एक तेरे बिना प्राण ओ प्राण के ! / गोपालदास “नीरज”

एक तरे बिना प्राण ओ प्राण के ! साँस मेरी सिसकती रही उम्र-भर ! बाँसुरी से बिछुड़ जो गया स्वर उसे भर लिया कंठ में शून्य आकाश ने, डाल विधवा हुई जोकि पतझर में माँग उसकी भरी मुग्ध मधुमास ने, हो गया कूल नाराज जिस नाव से पा गई प्यार वह एक मझधार का बुझ… Continue reading एक तेरे बिना प्राण ओ प्राण के ! / गोपालदास “नीरज”

तुम ही नहीं मिले जीवन में / गोपालदास “नीरज”

पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनारे इतना कुछ मिल पाया एक बस तुम ही नहीं मिले जीवन में हुई दोस्ती ऐसी दु:ख से हर मुश्किल बन गई रुबाई, इतना प्यार जलन कर बैठी क्वाँरी ही मर गई जुन्हाई, बगिया में न पपीहा बोला, द्वार न कोई उतरा डोला, सारा दिन कट गया बीनते… Continue reading तुम ही नहीं मिले जीवन में / गोपालदास “नीरज”

प्यार की कहानी चाहिए / गोपालदास “नीरज”

आदमी को आदमी बनाने के लिए जिंदगी में प्यार की कहानी चाहिए और कहने के लिए कहानी प्यार की स्याही नहीं, आँखों वाला पानी चाहिए। जो भी कुछ लुटा रहे हो तुम यहाँ वो ही बस तुम्हारे साथ जाएगा, जो छुपाके रखा है तिजोरी में वो तो धन न कोई काम आएगा, सोने का ये… Continue reading प्यार की कहानी चाहिए / गोपालदास “नीरज”

बेशरम समय शरमा ही जाएगा / गोपालदास “नीरज”

बूढ़े अंबर से माँगो मत पानी मत टेरो भिक्षुक को कहकर दानी धरती की तपन न हुई अगर कम तो सावन का मौसम आ ही जाएगा मिट्टी का तिल-तिलकर जलना ही तो उसका कंकड़ से कंचन होना है जलना है नहीं अगर जीवन में तो जीवन मरीज का एक बिछौना है अंगारों को मनमानी करने… Continue reading बेशरम समय शरमा ही जाएगा / गोपालदास “नीरज”

सेज पर साधें बिछा लो / गोपालदास “नीरज”

सेज पर साधें बिछा लो, आँख में सपने सजा लो प्यार का मौसम शुभे! हर रोज़ तो आता नहीं है। यह हवा यह रात, यह एकाँत, यह रिमझिम घटाएँ, यूँ बरसती हैं कि पंडित- मौलवी पथ भूल जाएँ, बिजलियों से माँग भर लो बादलों से संधि कर लो उम्र-भर आकाश में पानी ठहर पाता नहीं… Continue reading सेज पर साधें बिछा लो / गोपालदास “नीरज”

आदमी को प्यार दो / गोपालदास “नीरज”

सूनी-सूनी ज़िंदगी की राह है, भटकी-भटकी हर नज़र-निगाह है, राह को सँवार दो, निगाह को निखार दो, आदमी हो तुम कि उठा आदमी को प्यार दो, दुलार दो। रोते हुए आँसुओं की आरती उतार दो। तुम हो एक फूल कल जो धूल बनके जाएगा, आज है हवा में कल ज़मीन पर ही आएगा, चलते व़क्त… Continue reading आदमी को प्यार दो / गोपालदास “नीरज”

जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना / गोपालदास “नीरज”

जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए। नई ज्योति के धर नए पंख झिलमिल, उड़े मर्त्य मिट्टी गगन स्वर्ग छू ले, लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी, निशा की गली में तिमिर राह भूले, खुले मुक्ति का वह किरण द्वार जगमग, ऊषा जा न पाए, निशा आ ना पाए… Continue reading जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना / गोपालदास “नीरज”

प्रेम-पथ हो न सूना / गोपालदास “नीरज”

प्रेम-पथ हो न सूना कभी इसलिए जिस जगह मैं थकूँ, उस जगह तुम चलो। क़ब्र-सी मौन धरती पड़ी पाँव परल शीश पर है कफ़न-सा घिरा आसमाँ, मौत की राह में, मौत की छाँह में चल रहा रात-दिन साँस का कारवाँ, जा रहा हूँ चला, जा रहा हूँ बढ़ा, पर नहीं ज्ञात है किस जगह हो?… Continue reading प्रेम-पथ हो न सूना / गोपालदास “नीरज”

प्रेम का न दान दो / गोपालदास “नीरज”

प्रेम को न दान दो, न दो दया, प्रेम तो सदैव ही समृद्ध है। प्रेम है कि ज्योति-स्नेह एक है, प्रेम है कि प्राण-देह एक है, प्रेम है कि विश्व गेह एक है, प्रेमहीन गति, प्रगति विरुद्ध है। प्रेम तो सदैव ही समृद्ध है॥ प्रेम है इसीलिए दलित दनुज, प्रेम है इसीलिए विजित दनुज, प्रेम… Continue reading प्रेम का न दान दो / गोपालदास “नीरज”

अब बुलाऊँ भी तुम्हें / गोपालदास “नीरज”

अब बुलाऊँ भी तुम्हें तो तुम न आना! टूट जाए शीघ्र जिससे आस मेरी छूट जाए शीघ्र जिससे साँस मेरी, इसलिए यदि तुम कभी आओ इधर तो द्वार तक आकर हमारे लौट जाना! अब बुलाऊँ भी तुम्हें…!! देख लूं मैं भी कि तुम कितने निठुर हो, किस कदर इन आँसुओं से बेखबर हो, इसलिए जब… Continue reading अब बुलाऊँ भी तुम्हें / गोपालदास “नीरज”