धर्म है / गोपालदास “नीरज”

जिन मुश्किलों में मुस्कुराना हो मना, उन मुश्किलों में मुस्कुराना धर्म है। जिस वक़्त जीना गैर मुमकिन सा लगे, उस वक़्त जीना फर्ज है इंसान का, लाजिम लहर के साथ है तब खेलना, जब हो समुन्द्र पे नशा तूफ़ान का जिस वायु का दीपक बुझना ध्येय हो उस वायु में दीपक जलाना धर्म है। हो… Continue reading धर्म है / गोपालदास “नीरज”

जीवन कटना था कट गया / गोपालदास “नीरज”

जीवन कटना था, कट गया अच्छा कटा, बुरा कटा यह तुम जानो मैं तो यह समझता हूँ कपड़ा पुराना एक फटना था, फट गया जीवन कटना था कट गया। रीता है क्या कुछ बीता है क्या कुछ यह हिसाब तुम करो मैं तो यह कहता हूँ परदा भरम का जो हटना था, हट गया जीवन… Continue reading जीवन कटना था कट गया / गोपालदास “नीरज”

अब ज़माने को ख़बर कर दो कि ‘नीरज’ गा रहा है / गोपालदास “नीरज”

अब ज़माने को ख़बर कर दो कि ‘नीरज’ गा रहा है जो झुका है वह उठे अब सर उठाए, जो रूका है वह चले नभ चूम आए, जो लुटा है वह नए सपने सजाए, ज़ुल्म-शोषण को खुली देकर चुनौती, प्यार अब तलवार को बहला रहा है । अब ज़माने को ख़बर कर दो कि ‘नीरज’… Continue reading अब ज़माने को ख़बर कर दो कि ‘नीरज’ गा रहा है / गोपालदास “नीरज”

उसकी अनगिन बूँदों में स्वाति बूँद कौन? / गोपालदास “नीरज”

उसकी अनगिन बूँदों में स्वाति बूँद कौन? यह बात स्वयं बादल को भी मालूम नहीं। किस एक साँस से गाँठ जुड़ी है जीवन की? हर जीवित से ज्यादा यह प्रश्न पुराना है । कौन सी जलन जलकर सूरज बन जाती है? बुझ कर भी दीपक ने यह भेद न जाना है। परिचय करना तो बस… Continue reading उसकी अनगिन बूँदों में स्वाति बूँद कौन? / गोपालदास “नीरज”

कुछ मुक्तक / गोपालदास “नीरज”

१. अब न वो दर्द, न वो दिल, न वो दीवाने हैं अब न वो साज, न वो सोज, न वो गाने हैं साकी! अब भी यहां तू किसके लिए बैठा है अब न वो जाम, न वो मय, न वो पैमाने हैं २. इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में तुमको लग जाएंगी… Continue reading कुछ मुक्तक / गोपालदास “नीरज”

अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है / गोपालदास “नीरज”

अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है। दीप, स्वयं बन गया शलभ अब जलते-जलते, मंजिल ही बन गया मुसाफिर चलते-चलते, गाते गाते गेय हो गया गायक ही खुद सत्य स्वप्न ही हुआ स्वयं को छलते छलते, डूबे जहां कहीं भी तरी वहीं अब तट है, अब चाहे हर लहर बने मंझधार मुझे… Continue reading अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है / गोपालदास “नीरज”

ओ हर सुबह जगाने वाले /गोपालदास “नीरज”

ओ हर सुबह जगाने वाले, ओ हर शाम सुलाने वाले दुःख रचना था इतना जग में, तो फिर मुझे नयन मत देता जिस दरवाज़े गया ,मिले बैठे अभाव, कुछ बने भिखारी पतझर के घर, गिरवी थी ,मन जो भी मोह गई फुलावारी कोई था बदहाल धूप में, कोई था गमगीन छाँवों में महलों से कुटियों… Continue reading ओ हर सुबह जगाने वाले /गोपालदास “नीरज”

तन तो आज स्वतंत्र हमारा, लेकिन मन आज़ाद नहीं है / गोपालदास “नीरज”

तन तो आज स्वतंत्र हमारा, लेकिन मन आज़ाद नहीं है सचमुच आज काट दी हमने ज़ंजीरें स्वदेश के तन की बदल दिया इतिहास, बदल दी चाल समय की चाल पवन की देख रहा है राम-राज्य का स्वप्न आज साकेत हमारा खूनी कफ़न ओढ़ लेती है लाश मगर दशरथ के प्रण की मानव तो हो गया… Continue reading तन तो आज स्वतंत्र हमारा, लेकिन मन आज़ाद नहीं है / गोपालदास “नीरज”

साँसों के मुसाफिर / गोपालदास “नीरज”

इसको भी अपनाता चल, उसको भी अपनाता चल, राही हैं सब एक डगर के, सब पर प्यार लुटाता चल। बिना प्यार के चले न कोई, आँधी हो या पानी हो, नई उमर की चुनरी हो या कमरी फटी पुरानी हो, तपे प्रेम के लिए, धरिवी, जले प्रेम के लिए दिया, कौन हृदय है नहीं प्यार… Continue reading साँसों के मुसाफिर / गोपालदास “नीरज”

लेकिन मन आज़ाद नहीं है / गोपालदास “नीरज”

तन तो आज स्वतंत्र हमारा, लेकिन मन आज़ाद नहीं है। सचमुच आज काट दी हमने जंजीरें स्वदेश के तन की बदल दिया इतिहास बदल दी चाल समय की चाल पवन की देख रहा है राम राज्य का स्वप्न आज साकेत हमारा खूनी कफन ओढ़ लेती है लाश मगर दशरथ के प्रण की मानव तो हो… Continue reading लेकिन मन आज़ाद नहीं है / गोपालदास “नीरज”