मुझको याद किया जाएगा / गोपालदास “नीरज”

आँसू जब सम्मानित होंगे मुझको याद किया जाएगा जहाँ प्रेम का चर्चा होगा मेरा नाम लिया जाएगा। मान-पत्र मैं नहीं लिख सका राजभवन के सम्मानों का मैं तो आशिक रहा जनम से सुंदरता के दीवानों का लेकिन था मालूम नहीं ये केवल इस गलती के कारण सारी उम्र भटकने वाला, मुझको शाप दिया जाएगा। खिलने… Continue reading मुझको याद किया जाएगा / गोपालदास “नीरज”

नीरज गा रहा है / गोपालदास “नीरज”

अब जमाने को खबर कर दो कि ‘नीरज’ गा रहा है जो झुका है वह उठे अब सर उठाए, जो रूका है वह चले नभ चूम आए, जो लुटा है वह नए सपने सजाए, जुल्म-शोषण को खुली देकर चुनौती, प्यार अब तलवार को बहला रहा है। अब जमाने को खबर कर दो कि ‘नीरज’ गा… Continue reading नीरज गा रहा है / गोपालदास “नीरज”

बसंत की रात / गोपालदास “नीरज”

आज बसंत की रात, गमन की बात न करना! धूप बिछाए फूल-बिछौना, बगिय़ा पहने चांदी-सोना, कलियां फेंके जादू-टोना, महक उठे सब पात, हवन की बात न करना! आज बसंत की रात, गमन की बात न करना! बौराई अंबवा की डाली, गदराई गेहूं की बाली, सरसों खड़ी बजाए ताली, झूम रहे जल-पात, शयन की बात न… Continue reading बसंत की रात / गोपालदास “नीरज”

मैं अकंपित दीप / गोपालदास “नीरज”

मैं अकंपित दीप प्राणों का लिए, यह तिमिर तूफान मेरा क्या करेगा? बन्द मेरी पुतलियों में रात है, हास बन बिखरा अधर पर प्रात है, मैं पपीहा, मेघ क्या मेरे लिए, जिन्दगी का नाम ही बरसात है, साँस में मेरी उनंचासों पवन, यह प्रलय-पवमान मेरा क्या करेगा? यह तिमिर तूफान मेरा क्या करेगा? कुछ नहीं… Continue reading मैं अकंपित दीप / गोपालदास “नीरज”

बहार आई / गोपालदास “नीरज”

तुम आए कण-कण पर बहार आई तुम गए, गई झर मन की कली-कली। तुम बोले पतझर में कोयल बोली, बन गई पिघल गुँजार भ्रमर-टोली, तुम चले चल उठी वायु रूप-वन की झुक झूम-झूमकर डाल-डाल डोली, मायावी घूँघट उठते ही क्षण में रुक गया समय, पिघली दुख की बदली। तुम गए, गई झर मन की कली-कली॥… Continue reading बहार आई / गोपालदास “नीरज”

तुम झूम झूम गाओ / गोपालदास “नीरज”

तुम झूम झूम गाओ, रोते नयन हंसाओ, मैं हर नगर डगर के कांटे बुहार दूंगा। भटकी हुई पवन है, सहमी हुई किरन है, न पता नहीं सुबह का, हर ओर तम गहन है, तुम द्वार द्वार जाओ, परदे उघार आओ, मैं सूर्य-चांद सारे भू पर उतार दूंगा। तुम झूम झूम गाओ। गीला हरेक आंचल, टूटी… Continue reading तुम झूम झूम गाओ / गोपालदास “नीरज”

तब मेरी पीड़ा अकुलाई! / गोपालदास “नीरज”

तब मेरी पीड़ा अकुलाई! जग से निंदित और उपेक्षित, होकर अपनों से भी पीड़ित, जब मानव ने कंपित कर से हा! अपनी ही चिता बनाई! तब मेरी पीड़ा अकुलाई! सांध्य गगन में करते मृदु रव उड़ते जाते नीड़ों को खग, हाय! अकेली बिछुड़ रही मैं, कहकर जब कोकी चिल्लाई! तब मेरी पीड़ा अकुलाई! झंझा के… Continue reading तब मेरी पीड़ा अकुलाई! / गोपालदास “नीरज”

किसलिए आऊं तुम्हारे द्वार? / गोपालदास “नीरज”

जब तुम्हारी ही हृदय में याद हर दम, लोचनों में जब सदा बैठे स्वयं तुम, फिर अरे क्या देव, दानव क्या, मनुज क्या? मैं जिसे पूजूं जहां भी तुम वहीं साकार ! किसलिए आऊं तुम्हारे द्वार ? क्या कहा- ‘सपना वहां साकार होगा, मुक्ति औ अमरत्व पर अधिकार होगा, किन्तु मैं तो देव! अब उस… Continue reading किसलिए आऊं तुम्हारे द्वार? / गोपालदास “नीरज”

विश्व चाहे या न चाहे / गोपालदास “नीरज”

विश्व चाहे या न चाहे, लोग समझें या न समझें, आ गए हैं हम यहाँ तो गीत गाकर ही उठेंगे। हर नज़र ग़मगीन है, हर होठ ने धूनी रमाई, हर गली वीरान जैसे हो कि बेवा की कलाई, ख़ुदकुशी कर मर रही है रोशनी तब आँगनों में कर रहा है आदमी जब चाँद-तारों पर चढ़ाई,… Continue reading विश्व चाहे या न चाहे / गोपालदास “नीरज”

तुम्हारे बिना आरती का दीया यह / गोपालदास “नीरज”

तुम्हारे बिना आरती का दीया यह न बुझ पा रहा है न जल पा रहा है। भटकती निशा कह रही है कि तम में दिए से किरन फूटना ही उचित है, शलभ चीखता पर बिना प्यार के तो विधुर सांस का टूटना ही उचित है, इसी द्वंद्व में रात का यह मुसाफिर न रुक पा… Continue reading तुम्हारे बिना आरती का दीया यह / गोपालदास “नीरज”