दुनिया की सबसे पहली स्त्री के स्तनों से बहकर जो अमर हो गया वही रंग है यह यों यह आपको काँस और दूधमोंगरों के फूलों में भी मिल जाएगा जब स्त्रियों के पास बचता नहीं कोई दूसरा रंग वे इसी रंग के सहारे काट देती हैं अपना सारा जीवन यह रंग उन बगुलों का भी… Continue reading रंग : छह कविताएँ-4 (सफ़ेद) / एकांत श्रीवास्तव
Category: Ekant Shrivastava
रंग : छह कविताएँ-3 (पीला) / एकांत श्रीवास्तव
इस रंग के बारे में कोई भी कथन इस वक़्त कितना दुस्साहसिक काम है जब जी रहे हैं इस रंग को गेंदे के इतने और इतने सारे फूल जब हँस रहे हों पृथ्वी पर अजस्र फूल सरसों और सूरजमुखी के सूर्य भी जब चमक रहा हो ठीक इसी रंग में और यही रंग जब गिर… Continue reading रंग : छह कविताएँ-3 (पीला) / एकांत श्रीवास्तव
रंग : छह कविताएँ-2 (नीला) / एकांत श्रीवास्तव
शताब्दियों से यह हमारे आसमान का रंग है और हमारी नदियों का मन थरथराता है इसी रंग में इसी रंग में डूबे हैं अलसी के सहस्ञों फूल यह रंग है उस स्याही का जो फैली है बच्चों की उंगलियों और कमीजों पर यह रंग है मॉं की साड़ी की किनार का दोस्त के अंतर्देशीय का… Continue reading रंग : छह कविताएँ-2 (नीला) / एकांत श्रीवास्तव
रंग : छह कविताएँ-1 (लाल) / एकांत श्रीवास्तव
यह दाड़िम के फूल का रंग है दाड़िम के फल-सा पककर फूट रहा है जिसका मन यह उस स्त्री के प्रसन्न मन का रंग है यह रंग पान से रचे दोस्त के होंठों की मुस्कुराहट का है यह रंग है खूब रोई बहन की ऑंखों का यह रंग राजा टिड्डे का है जिसकी पूँछ में… Continue reading रंग : छह कविताएँ-1 (लाल) / एकांत श्रीवास्तव
एक बेरोज़गार प्रेमी का आत्मालाप / एकांत श्रीवास्तव
जो भूखा होगा प्यार कैसे करेगा श्रीमान्? पार्क की हरियाली खत्म कैसे करेगी जीवन का सूखा? जब मैं झुकता हूं प्रेमिका के चेहरे पर चुम्बन नहीं, नौकरी मांगते हैं उसके होंठ प्रेम-पार्क की बेगन बेलिया रोजगार की समस्या में क्या कोई सार्थक भूमिका निभा पायेगी महोदय? मोतिया, जूही और चम्पा के सामने कैसे सिर उठा… Continue reading एक बेरोज़गार प्रेमी का आत्मालाप / एकांत श्रीवास्तव
खाली दिन / एकांत श्रीवास्तव
पिछली रात टूटे हुए स्वप्न के आघात से आरम्भ होते हैं खाली दिन कैलेण्डर में कोई नाम नहीं होता खाली दिनों का न सोम न मंगल कोई तारीख नहीं होती खाली दिनों की न दस न सञह बिना अंगूठे वाली चप्पल की तरह घिसटते रहते हैं खाली दिन हमारे साथ-साथ हम घड़ी देखते हैं और… Continue reading खाली दिन / एकांत श्रीवास्तव
पीठ / एकांत श्रीवास्तव
यह एक पीठ है काली चट्टान की तरह चौड़ी और मजबूत इस पर दागी गयीं अनगिनत सलाखें इस पर बरसाये गये हजार-हजार कोड़े इस पर ढोया गया इतिहास का सबसे ज्यादा बोझ यह एक झुकी हुई डाल है पेड़ की तरह उठ खड़ी होने को आतुर.
बोलना / एकांत श्रीवास्तव
बोले हम पहली बार अपने दुःखों को जुबान देते हुए जैसे जन्म के तत्काल बाद बोलता है बच्चा पत्थर हिल उठे कि बोले हम सदियों के गूंगे लोग पहली बार हमने जाना बोलना हमें लगा हम अभी-अभी पैदा हुए हैं.
दंगे के बाद / एकांत श्रीवास्तव
एक नुचा हुआ फूल है यह शहर जिसे रौंद गये हैं आततायी एक तड़का हुआ आईना जिसमें कोई चेहरा साफ-साफ दिखायी नहीं देता यह शहर लाखों-लाख कंठों में एक रूकी हुई रूलाई है एक सूखा हुआ आंसू एक उड़ा हुआ रंग एक रौंदा हुआ जंगल है यह शहर दंगे के बाद आग और धुएं के… Continue reading दंगे के बाद / एकांत श्रीवास्तव
अन्तर्देशीय / एकांत श्रीवास्तव
धूप में नहाया एक नीला आकाश तुमने मुझे भेजा अब इन झिलमिलाते तारों का क्या करूँ मैं जो तैरने लगे हैं चुपके से मेरे अंधेरों में क्या करूँ इन परिन्दों का तुम्हारे अन्तर्देशीय से निकलकर जो उड़ने लगे हैं मेरे चारों तरफ़ तुम्हारे न चाहने के बावजूद तारों और परिन्दों के साथ चुपचाप चले आए… Continue reading अन्तर्देशीय / एकांत श्रीवास्तव