सोई सुहागनि साँच सिगार / दादू दयाल

सोई सुहागनि साँच सिगार। तन-मन लाइ भजै भरतार॥टेक॥ भाव-भगत प्रेम-लौ लावै। नारी सोई सुख पावै॥१॥ सहज सँतोष सील जब आया। तब नारी नाह अमोलिक पाया॥२॥ तन मन जोबन सौपि सब दीन्हा। तब कंत रिझाइ आप बस कीन्हा॥३॥ दादू बहुरि बियोग न होई। पिवसूँ प्रीति सुहागनि सोई॥४॥

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राम रस मीठा रे / दादू दयाल

राम रस मीठा रे, कोइ पीवै साधु सुजाण। सदा रस पीवै प्रेमसूँ सो अबिनासी प्राण॥टेक॥ इहि रस मुनि लागे सबै, ब्रह्मा-बिसुन-महेस। सुर नर साधू स्म्त जन, सो रस पीवै सेस॥१॥ सिध साधक जोगी-जती, सती सबै सुखदेव। पीवत अंत न आवई, पीपा अरु रैदास। पिवत कबीरा ना थक्या अजहूँ प्रेम पियास॥३॥ यह रस मीठा जिन पिया,… Continue reading राम रस मीठा रे / दादू दयाल

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ऐसा राम हमारे आवै / दादू दयाल

राग: गौरी ऐसा राम हमारे आवै। बार पार कोइ अंत पावै॥टेक॥ हलका भारी कह्या न जाइ। मोल-माप नाहिं रह्या समाइ॥ किअम्त लेखा नहिं परिमाण। सब पचि हार साध सुजाण॥२॥ आगौ पीछौ परिमित नाहीं। केते पारिष आवहिं जाहीं॥३॥ आदि अंत-मधि लखै न कोइ। दादू देखे अचरज होइ॥४॥

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संग न छाँडौं मेरा / दादू दयाल

राग: गौरी संग न छाँडौं मेरा पावन पीव। मैं बलि तेरे जीवन जीव॥टेक॥ संगि तुम्हारे सब सुख होइ। चरण-कँवलमुख देखौं तोहि॥१॥ अनेक जतन करि पाया सोइ। देखौं नैनौं तौ सुं होइ॥२॥ सरण तुम्हारी अंतरि बास। चरण-कँवल तहँ देहु निवास॥३॥ अब दादू मन अनत न जाइ। अंतर बेधि रह्यो लौ लाइ॥४॥

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तौलगि जिनि मारै तूँ मोहिं / दादू दयाल

राग: गौरी तौलगि जिनि मारै तूँ मोहिं। जौलगि मैं देखौं नहिं तोहिं॥टेक॥ इबके बिछुरे मिलन कैसे होइ। इहि बिधि बहुरि न चीन्है कोइ॥१॥ दीनदयाल दया करि जोइ। सब सुख-आनँद तुम सूँ होइ॥२॥ जनम-जनमके बंधन खोइ। देखण दादू अहि निशि रोइ॥३॥

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बिरहणि कौं सिंगार न भावै / दादू दयाल

बिरहणिकौं सिंगार न भावै। है कोइ ऐसा राम मिलावै॥टेक॥ बिसरे अंजन-मंजन, चीरा। बिरह-बिथा यह ब्यापै पीरा॥१॥ नौ-सत थाके सकल सिंगारा। है कोइ पीड़ मिटावनहारा॥२॥ देह-गेह नहिं सुद्धि सरीरा। निसदिन चितवत चातक नीरा॥३॥ दादू ताहि न भावत आना। राम बिना भई मृतक समाना॥४॥

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मेरे मन भैया राम कहौ रे / दादू दयाल

मेरे मन भैया राम कहौ रे॥टेक॥ रामनाम मोहि सहजि सुनावै। उनहिं चरन मन कीन रहौ रे ॥१॥ रामनाम ले संत सुहावै। कोई कहै सब सीस सहौ रे॥२॥ वाहीसों मन जोरे राखौ। नीकै रासि लिये निबहौ रे॥३॥ कहत सुनत तेरौ कछू न जावे। पाप निछेदन सोई लहौ रे॥४॥ दादू जन हरि-गुण गाओ। कालहि जालहि फेरि दहौ… Continue reading मेरे मन भैया राम कहौ रे / दादू दयाल

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तहाँ मुझ कमीन की कौन चलावै / दादू दयाल

तहाँ मुझ कमीन की कौन चलावै। जाका अजहूँ मुनि जन महल न पावै।। स्यौ विरंचि नारद मुनि गाबे, कौन भाँति करि निकटि बुलावै।।1 देवा सकल तेतीसौ कोडि, रहे दरबार ठाड़े कर जोड़ि।।2 सिध साधक रहे ल्यौ लाई, अजहूँ मोटे महल न पाइ।।3 सवतैं नीच मैं नांव न जांनां, कहै दादू क्यों मिले सयाना।।4

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भाई रे! ऐसा पंथ हमारा / दादू दयाल

भाई रे! ऐसा पंथ हमारा द्वै पख रहितपंथ गह पुरा अबरन एक अघारा बाद बिबाद काहू सौं नाहीं मैं हूँ जग से न्यारा समदृष्टि सूं भाई सहज में आपहिं आप बिचारा मैं,तैं,मेरी यह गति नाहीं निरबैरी निरविकरा काम कल्पना कदै न कीजै पूरन ब्रह्म पियारा एहि पथि पहुंचि पार गहि दादू, सो तब सहज संभारा

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घीव दूध में रमि रह्या / दादू दयाल

घीव दूध में रमि रह्या व्यापक सब हीं ठौर दादू बकता बहुत है मथि काढै ते और यह मसीत यह देहरा सतगुरु दिया दिखाई भीतर सेवा बन्दगी बाहिर कहे जाई दादू देख दयाल को सकल रहा भरपूर रोम-रोम में रमि रह्या तू जनि जाने दूर केते पारखि पचि मुए कीमति कही न जाई दादू सब… Continue reading घीव दूध में रमि रह्या / दादू दयाल

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