इति-हास / चंद्र कुमार जैन

इतिहास में हो जब हास की इति तब होता है वि वास का अथ कहानी अतीत की सत्य साधना के नवनीत की भर देती है झोली खिल उठते हैं प्रसून अंतर्मन के इसीलिये इतिहास – सूत्र हैं हितकारी जन-जन के

सच्चा संत / चंद्र कुमार जैन

संत किसी अंत से नहीं डरता कठिनाइयॉ उसकी पगडंडियँ हैं उपसर्ग उसे पथ बताते हैं वन, उपवन, उद्यानों का सौंदर्य उसे रिझाता नहीं स्वर्ग का सुख वैभव भी उसे भाता नहीं संत तो हिमगिरि के गर्भ से उत्पन्न होकर सिंधु-पथ गामी बनने में ही जीवन की सार्थकता मानता है सिंधु-वत हो जाने का संकल्प ठानता… Continue reading सच्चा संत / चंद्र कुमार जैन

आलोकित कल होगा / चंद्र कुमार जैन

जीवनदान करें, बेला है बलिदानों की आज ! प्रात: से रवि टेर रहा है ललित प्रभा का बीज उगाओ धरती के कोने-कोने में मानवता का अलख जगाओ त्याग, दया, करूणा के घर में, सफल बनें सब काज ! कण-कण, तृण-तृण आमंत्रित कर, महा शक्ति का प्राण जगाओ, फूलों से कोमलता लेकर नवजीवन के गीत सुनाओ… Continue reading आलोकित कल होगा / चंद्र कुमार जैन

मुक्ति के लिए कविता / चंद्र कुमार जैन

शब्दों की अर्थवत्ता को तोड़ने और व्यर्थ अर्थों की सत्ता को छोड़ने के बाद जो रची जाएगी वही होगी जागरण की कविता ! करेगी संघर्श वह दिन – प्रतिदिन सीमित होते सुखों के खिलाफ टूटेगी नहीं वह जीवित रखेगी अपनी आँखों में सुख और सौंदर्य के सपनों को मांजेगी अपने दु:खों से अपना तन !… Continue reading मुक्ति के लिए कविता / चंद्र कुमार जैन

क़द / चंद्र कुमार जैन

अपने कद को ध्यान में रखकर उसने खड़ी की ऊँची दीवारें और बनाया एक गगनचुंबी महल अब क्या है महल ही जब ऊँचा हो गया तो आदमी का कद…..!!!

मुझे उनसे मिलना है / चंद्र कुमार जैन

मूझे उनसे मिलना है जो कम से कम यह जानते हैं कि वे कुछ नहीं जानते ! मुझे उनसे मत मिलाना जो अपनी जानकारी को ही विज्ञान समझते हैं ! और मुझे मिलना है उनसे जो अपना घर जलाकर औरों की दुनिया रौशन करते हैं ! मुझे उनसे मत मिलाना जो दूसरों के अंधेरे में… Continue reading मुझे उनसे मिलना है / चंद्र कुमार जैन

पतझर का झरना देखो तुम / चंद्र कुमार जैन

मधु-मादक रंगों ने बरबस, इस तन का श्रृंगार किया है ! रंग उसी के हिस्से आया, जिसने मन से प्यार किया है ! वासंती उल्लास को केवल, फागुन का अनुराग न समझो ! ढोलक की हर थाप को केवल, मधुऋतु की पदचाप न समझो !! भीतर से जो खुला उसी ने, जीवन का मनुहार किया… Continue reading पतझर का झरना देखो तुम / चंद्र कुमार जैन

एक दीप सूरज के आगे / चंद्र कुमार जैन

लीक से हटकर अलग चाहे हुआ अपराध मुझसे, सच कहूँ, सूरज के आगे दीप मैंने रख दिया है ! प्रश्नों के उत्तर नये देकर उलझना जानता हूँ , और हर उत्तर में जलते प्रश्न को पहचानता हूँ ! जाने क्यों संसार मेरे प्रश्न पर कुछ मौन सा है , तोड़ने इस मौन का हर स्वाद… Continue reading एक दीप सूरज के आगे / चंद्र कुमार जैन