मोहर होंटों पे समाअत पे बिठा लें पहरे और आँखों को किसी आहनी ताबूत में रख दें कि हमें ज़िंदगी करने की क़ीमत भी चुकानी है यहाँ
Category: Bashar Nawaz
अज़ल ता अबद / बशर नवाज़
उफ़ुक़-ता-उफ़ुक़ ये धुँदलके का आलम ये हद-ए-नज़र तक नम-आलूद सी रेत का नर्म क़ालीं कि जिस पर समुंदर की चंचल जवाँ बेटियों ने किसी नक़्श-ए-पा को भी न छोड़ा फ़ज़ा अपने दामन में बोझल ख़मोशी समेटे है लेकिन मचलती हुई मस्त लहरों के होंटों पे नग़्मा है रक़्साँ ये नग़्मा सुना था मुझे याद आता… Continue reading अज़ल ता अबद / बशर नवाज़