क़र्ज़ / बशर नवाज़

मोहर होंटों पे
समाअत पे बिठा लें पहरे
और आँखों को
किसी आहनी ताबूत में रख दें
कि हमें
ज़िंदगी करने की क़ीमत भी चुकानी है यहाँ