शायद अभी है राख में कोई शरार भी / ‘अदा’ ज़ाफ़री

शायद अभी है राख में कोई शरार भी क्यों वर्ना इन्तज़ार भी है [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”gyurftyfty”]इज़्तिरार[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] भी ध्यान आ गया है मर्ग-ए-दिल-ए-नामुराद का मिलने को मिल गया है सुकूँ भी क़रार भी अब ढूँढने चले हो मुसाफ़िर को दोस्तो हद्द-ए-निगाह तक न रहा जब ग़ुबार भी हर आस्ताँ पे नासियाफ़र्सा हैं आज वो जो कल न… Continue reading शायद अभी है राख में कोई शरार भी / ‘अदा’ ज़ाफ़री

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फिर हुआ वक़्त कि हो बाल कुशा मौजे-शराब

फिर हुआ वक़्त कि हो बालकुशा[1]मौजे-शराब[2] दे बते मय[3]को दिल-ओ-दस्ते शना[4] मौजे-शराब पूछ मत वजहे-सियहमस्ती[5]-ए-अरबाबे-चमन[6] साया-ए-ताक[7] में होती है हवा मौजे-शराब है ये बरसात वो मौसम कि अजब क्या है अगर मौजे-हस्ती[8] को करे फ़ैज़े-हवा[9] मौजे शराब जिस क़दर रूहे-नबाती[10] है जिगर तश्ना-ए-नाज़[11] दे है तस्कीं[12]ब-दमे- आबे-बक़ा [13] मौजे-शराब बस कि दौड़े है रगे-ताक[14] में… Continue reading फिर हुआ वक़्त कि हो बाल कुशा मौजे-शराब