मेरे सुबूत बहे जा रहे हैं पानी में / फ़रहत एहसास

मेरे सुबूत बहे जा रहे हैं पानी में किसे गवाह बनाऊँ सराए-फानी(1) में 1.नाशवान सराय जो आँसुओं में नहाते रहे वो पाक रहे नमाज़ वर्ना किसे मिल सकी जवानी में भड़क उठे हैं फिर आँखों में आँसुओं के चिराग़ फिर आज आग लगा दी गई है पानी में हमीं थे ऐसे कहाँ के अपने घर… Continue reading मेरे सुबूत बहे जा रहे हैं पानी में / फ़रहत एहसास

फिर वही चाँद वही रात कहाँ से लाऊँ / फ़रहत एहसास

फिर वही चाँद वही रात कहाँ से लाऊँ उससे दोबारा मुलाक़ात कहाँ से लाऊँ ! फाका करने से फकीरी तो नहीं मिल जाती तंगदस्ती में करामात कहाँ से लाऊँ ! हर घड़ी जागता रहता है दुखों का सूरज नींद आती है मगर रात कहाँ से लाऊँ !

उस तरफ तो तेरी यकताई है / फ़रहत एहसास

उस तरफ तो तेरी यकताई है इस तरफ़ में मेरी तनहाई है दो अलग लफ़्ज नहीं हिज्र ओ विसाल एक में एक की गोयाई है है निशाँ जंग से भाग आने का घर मुझे बाइस-ए-रूसवाई है हब्स हैं मश्रिक ओ मग़रिब दोनेां अब न पछवा है न पुरवाई है घास की तरह पड़े हैं हम… Continue reading उस तरफ तो तेरी यकताई है / फ़रहत एहसास

तू मुझ को जो इस शहर में लाया नहीं होता / फ़रहत एहसास

तू मुझ को जो इस शहर में लाया नहीं होता मैं बे-सर-ओ-सामाँ कभी रूसवा नहीं होता कुछ पेड़ भी बे-फ़ैज हैं इस राह-गुज़र के कुछ धूप भी ऐसी है के साया नहीं होता ख़्वाबों में जो इक शहर बना देता है मुझ को जब आँख खुली हो तो वो चेहरा नहीं होता किस की है… Continue reading तू मुझ को जो इस शहर में लाया नहीं होता / फ़रहत एहसास

सूने सियाह शहर पे मंज़र-पज़ीर मैं / फ़रहत एहसास

सूने सियाह शहर पे मंज़र-पज़ीर मैं आँखें क़लील होती हुई और कसीर मैं मस्जिद की सीढ़ियों पे गदा-गर ख़ुदा का नाम मस्जिद के बाम ओ दर पे अमीर ओ कबीर मैं दर-अस्ल इस जहाँ को ज़रूरत नहीं मेरी हर-चंद इस जहाँ के लिए ना-गुज़ीर मैं मैं भी यहाँ हूँ उस की शहादत में किस को… Continue reading सूने सियाह शहर पे मंज़र-पज़ीर मैं / फ़रहत एहसास

मैं रोना चाहता हूँ ख़ूब रोना चाहता हूँ मैं / फ़रहत एहसास

मैं रोना चाहता हूँ ख़ूब रोना चाहता हूँ मैं और उस के बाद गहरी नींद सोना चाहता हूँ मैं तेरे होंटों के सहरा में तेरी आँखों के जंगल में जो अब तक पा चुका हूँ उस को खोना चाहता हूँ मैं ये कच्ची मिट्टीयों को ढेर अपने चाक पर रख ले तेरी रफ़्तार का हम-रक़्स… Continue reading मैं रोना चाहता हूँ ख़ूब रोना चाहता हूँ मैं / फ़रहत एहसास

कभी हँसते नहीं कभी रोते नहीं कभी कोई गुनाह नहीं करते / फ़रहत एहसास

कभी हँसते नहीं कभी रोते नहीं कभी कोई गुनाह नहीं करते हमें सुब्ह कहाँ से मिले के कभी कोई रात सियाह नहीं करते हाथों से उठाते हैं जो मकाँ आँखों से गिराते रहते हैं सहराओं के रहने वाले हम शहरों से निबाह नहीं करते बेकार सी मिट्टी का इक ढेर बने बैठ रहते हैं हम… Continue reading कभी हँसते नहीं कभी रोते नहीं कभी कोई गुनाह नहीं करते / फ़रहत एहसास

काबा-ए-दिल दिमाग़ का फिर से गुलाम हो गया / फ़रहत एहसास

काबा-ए-दिल दिमाग़ का फिर से गुलाम हो गया फिर से तमाम शहर पे इश्क़ हराम हो गया मैं ने तो अपने सारे फूल उस के चमन को दे दिए ख़ुश-बू उड़ी तो इक ज़रा मेरा भी नाम हो गया यार ने मेरी ख़ाक-ए-ख़ाम रख ली फिर अपने चाक पर मैं तो सफ़र पे चल पड़ा… Continue reading काबा-ए-दिल दिमाग़ का फिर से गुलाम हो गया / फ़रहत एहसास

जिस्म की कुछ और अभी मिट्टी निकाल / फ़रहत एहसास

जिस्म की कुछ और अभी मिट्टी निकाल और अभी गहराई से पानी निकाल ऐ ख़ुदा मेरी रगों में दौड़ जा शाख़-ए-दिल पर इक हरी पत्ती निकाल भेज फिर से अपनी आवाज़ों का रिज़्क़ फिर मेरे सहरा से इक बस्ती निकाल मुझ से साहिल की मोहब्बत छीन ले मेरे घर के बीच इक नद्दी निकाल मैं… Continue reading जिस्म की कुछ और अभी मिट्टी निकाल / फ़रहत एहसास

जिस्म के पार वो दिया सा है / फ़रहत एहसास

जिस्म के पार वो दिया सा है दरमियाँ ख़ाक का अँधेरा है खिल रहे हैं गुलाब होंटों पर और ख़्वाबों में उस का बोसा है मेरे आग़ोश में समा कर भी वो बहुत है तो इस्तिआरा है फिर से उन जू-ए-शीर आँखों ने बे-सुतूँ जिस्म को गिराया है वो तुम्हारी हरी-भरी आँखें रेत को देख… Continue reading जिस्म के पार वो दिया सा है / फ़रहत एहसास