कल चौदहवीं की रात थी आबाद था कमरा तेरा होती रही दिन-ताक-दिन बजता रहा तबला तेरा शौहर शनासा आशना हम-साया आशिक़ नामा-बर हाज़िर था तेरी बज़्म में हर चाहने वाला तेरा आशिक़ है जितने दीदा-वर तू सब का मंजूर-ए-नज़र नत्था तेरा फ़ज्जा तेरा ऐरा तेरा ग़ैरा तेरा इक शख़्स आया बज़्म में जैसे सिपाही रज़्म… Continue reading कल चौदहवीं की रात थी आबाद था कमरा तेरा / दिलावर ‘फ़िगार’
Author: poets
हुस्न पर ऐतबार हद कर दी / दिलावर ‘फ़िगार’
हुस्न पर ऐतबार हद कर दी आप ने भी ‘फिगार’ हद कर दी आदमी शाहकार-ए-फितरत है मेरे परवर-दिगार हद कर दी शाम-ए-ग़म सुब्ह-ए-हश्र तक पहुँची ऐ शब-ए-इंतिज़ार हद कर दी एक शादी तो ठीक है लेकिन एक दो तीन चार हद कर दी ज़ौजा और रिक्शा में अरे तौबा दाश्ता और ब-कर हद कर दी… Continue reading हुस्न पर ऐतबार हद कर दी / दिलावर ‘फ़िगार’
अदब को जिंस-ए-बाज़ारी न करना / दिलावर ‘फ़िगार’
अदब को जिंस-ए-बाज़ारी न करना ग़ज़ल के साथ बद-कारी न करना सिवा-ए-जाँ यहाँ हर शय गिराँ है कराची में ख़रीदारी न करना जो हल्दी से मोहब्बत है तो यारो किसी चूहे को पंसारी न करना फ़कत क़ौव्वाल समझे इस का मतलब ग़ज़ल को इतना मेयारी न करना जो अख़्तर हैं यहाँ उन में ख़ुदा-या किसी… Continue reading अदब को जिंस-ए-बाज़ारी न करना / दिलावर ‘फ़िगार’
ज़ख़्म / फ़रहत एहसास
तब तक तुम्हारे चेहरे पर ख़ून की रवानी है मेरी आँखों के ज़ख़्म ताज़ा रहेंगे
तुम नहीं माने / फ़रहत एहसास
सोचो फ़िर एक बार गौर से जब तुम पैदा हुए थे तुम्हारी माँ कितना फूट कर रोई थी लेकिन तुम नहीं माने
पेश-ओ-पस / फ़रहत एहसास
उसके आगे सन्नाटा है वो काला है उसके पीछे इक चेहरा है वो प्यारा है वो अपनी पीठ पर अपनी आँखें बांधे जाता है एक पाँव आगे की जानिब दूसरा पीछे जाता है
गुनाहों की धुँद / फ़रहत एहसास
अपनी दुआओं के ज़ख़्मी पैरों से चलता जाता हूँ और ये काँटे-दार रास्ता उस वीरान मस्ज़िद तक जाता है जिस के तमाम गुम्बद-ओ-मेहराब मेरे गुनाहों की धुंद में डूबे हुए हैं
कूज़ा-ग़र / फ़रहत एहसास
ऐ कूज़ा-ग़र! मिरी मिट्टी ले मेरा पानी ले मुझे गूँध ज़रा मुझे चाक चढ़ा मुझे रंग-बिरंगे बर्तन दे
आगाज़ की तारीख़ / फ़रहत एहसास
इक मुसाफ़िर हूँ बड़ी दूर से चलता हुआ आया हूँ यहाँ राह में मझसे जुदा हो गई सूरत मेरी अपने चेहरे का बस इक धुँधला तसव्वुर है मेरी आँखों में रास्ते में मेरे कदमों के निशाँ भी होंगे हो जो मुमकिन तो उन्हीं से मेरे आगाज़ की तारीख़ सुनो.
मैं शहर में किस शख़्स को जीने की दुआ दूँ / फ़रहत एहसास
मैं शहर में किस शख़्स को जीने की दुआ दूँ जीना भी तो सबके लिए अच्छा नहीं होता किसकी है ये तस्वीर जो बनती नहीं मुझसे मैं किसका तकाजा हूँ जो पूरा नहीं होता !