दोराहा / अंजू शर्मा

यह तय था उन्हें नहीं चाहिए थी तुम्हारी बेबाकी तुम्हारी स्वतंत्रता, तुम्हारा गुरुर, और तुम्हारा स्वाभिमान, तुम सीखती रही छाया पकड़ना, तुम बनाती रही रेत के कमज़ोर घरोंदे, तुम सजती रही उनकी ही सौंपी बेड़ियों से, वे मांगते रहे समझौते, वे चाहते रहे कमिटमेंट, वे चुराते रहे उपलब्धियां, वे बनाते रहे दीवारें, तुम बदलती रही… Continue reading दोराहा / अंजू शर्मा

इंकार / अंजू शर्मा

वे बड़े थे, बहुत बड़े, वे बहुत ज्ञानी थे, बड़े होने के लिए जरूरी हैं कितनी सीढियाँ वे गिनती जानते थे, वे केवल बड़े बनने से संतुष्ट नहीं थे, उन्हें बखूबी आता था बड़े बने रहने का भी हुनर, वे सिद्धहस्त थे आंकने में अनुमानित मूल्य इस समीकरण का, कि कितना नीचे गिरने पर कोई… Continue reading इंकार / अंजू शर्मा

मुस्कान / अंजू शर्मा

मैं हर रोज उसे देखता हूँ बालकोनी में कपडे सुखाती या मनीप्लांट संवारती वह नवविवाहिता हर रोज़ ओढ़े रहती है किसी विमान परिचारिका-सी मुस्कान मेरा कलम चलाता हाथ या चश्में से अख़बार की सुर्खियाँ पीती आँखें या हाथ में पकड़ा ठंडी होती कॉफ़ी का उनींदा कप या कई दिनों बाद दाढ़ी बनाने को बमुश्किल तैयार… Continue reading मुस्कान / अंजू शर्मा

बिछड़े दोस्त के लिए / अंजू शर्मा

अगर मैं कह दूँ कि हम आम दोस्त थे तो ये वाक्य सच्चाई से उतना ही दूर होगा जितनी दूरी थी हमारे कदमों के बीच इस दूरी का कारण कुछ भी हो सकता है शायद इसलिए कि तुम्हारे और मेरे सपनों की मंज़िलें कुछ और थीं, या शायद इसलिए कि तुम तुम थे, और मैं… Continue reading बिछड़े दोस्त के लिए / अंजू शर्मा

महानगर में आज / अंजू शर्मा

अक्सर, जब बिटिया होती है साथ और करती है मनुहार एक कहानी की, रचना चाहती हूँ …सपनीले इन्द्रधनुष, चुनना चाहती हूँ …कुछ मखमली किस्से, यूँ हमारे मध्य तैरती रहती हैं कई रोचक कहानियां, किन्तु इनमें परियों और राजकुमारियों के चेहरे इतने कातर पहले कभी नहीं थे, औचक खड़ी सुकुमारियाँ भूल जाया करती हैं टूथपेस्ट के… Continue reading महानगर में आज / अंजू शर्मा

तीलियाँ / अंजू शर्मा

रहना ही होता है हमें अनचाहे भी कुछ लोगों के साथ, जैसे माचिस की डिबिया में रहती हैं तीलियाँ सटी हुई एक दूसरे के साथ, प्रत्यक्षतः शांत और गंभीर एक दूसरे से चुराते नज़रें पर देखते हुए हजारो-हज़ार आँखों से, तलाश में बस एक रगड़ की और बदल जाने को आतुर एक दावानल में, भूल… Continue reading तीलियाँ / अंजू शर्मा

ओ शिखर पुरुष / अंजू शर्मा

ओ शिखर पुरुष, हिमालय से भी ऊंचे हो तुम और मैं दूर से निहारती, सराहती क्या कभी छू पाऊँगी तुम्हे, तुम गर्वित मस्तक उठाये देखते हो सिर्फ आकाश को, जहाँ तुम्हारे साथी हैं दिनकर और शशि, और मैं धरा के एक कण की तरह, तुम तक पहुँच पाने की आस में उठती हूँ और गिर… Continue reading ओ शिखर पुरुष / अंजू शर्मा

मैं अहिल्या नहीं बनूंगी / अंजू शर्मा

हाँ मेरा मन आकर्षित है उस दृष्टि के लिए, जो उत्पन्न करती है मेरे मन में एक लुभावना कम्पन, किन्तु शापित नहीं होना है मुझे, क्योंकि मैं नकारती हूँ उस विवशता को जहाँ सदियाँ गुजर जाती हैं एक राम की प्रतीक्षा में, इस बार मुझे सीखना है फर्क इन्द्र और गौतम की दृष्टि का वाकिफ… Continue reading मैं अहिल्या नहीं बनूंगी / अंजू शर्मा

ड्राईंग / अंजू शर्मा

उसकी नन्ही सी दो आँखे चमक उठती है देखकर तस्वीरों की किताब, लाल पीले हर नीले सभी रंग लुभाते हैं उसे पर माँ क्यों थमा देती है अक्सर काला तवा जब लौट कर आती है बड़ी कोठी के काम से थककर, और वो निर्विकार बनाती है नन्हे हाथों से कच्ची रोटी पर ड्राईंग माँ से… Continue reading ड्राईंग / अंजू शर्मा

चलो मीत / अंजू शर्मा

चलो मीत, चलें दिन और रात की सरहद के पार, जहाँ तुम रात को दिन कहो तो मैं मुस्कुरा दूं, जहाँ सूरज से तुम्हारी दोस्ती बरक़रार रहे और चाँद से मेरी नाराज़गी बदल जाये ओस की बूंदों में, चलो मीत, चलें उम्र की उस सीमा के परे जहाँ दिन, महीने, साल वाष्पित हो बदल जाएँ… Continue reading चलो मीत / अंजू शर्मा