मुस्कान / अंजू शर्मा

मैं हर रोज उसे देखता हूँ
बालकोनी में कपडे सुखाती
या मनीप्लांट संवारती
वह नवविवाहिता हर रोज़ ओढ़े रहती है
किसी विमान परिचारिका-सी मुस्कान
मेरा कलम चलाता हाथ
या चश्में से अख़बार की सुर्खियाँ पीती आँखें
या हाथ में पकड़ा
ठंडी होती कॉफ़ी का उनींदा कप
या कई दिनों बाद दाढ़ी बनाने को
बमुश्किल तैयार रेज़र
अक्सर ठिठक जाते हैं…

कभी-कभी कोफ़्त होने लगती है
इस मुस्कान से
क्या वो तब भी मुस्कुराएगी
जब पायेगी अपने
परले दर्जे के अय्याश पति के कोट पर
एक बाल
जो उसके बालों के रंग और साइज़ से
बेमेल है
जब उसके बेड के साइड टेबल पर रखी
तस्वीरें सिकुड़ने लगेंगी
और फ्रेम बड़ा हो जायेगा
जब शादी का रंगीन एल्बम
‘ब्लैक एंड व्हाइट’ लगने लगेगा
जब वो ऑफिस से लौटते हुए
नहीं लायेगा कोई तोहफा
सच कहूँ तो उसका
छत पर बने उसके कमरे के
कोने में रखे बोनसाई में बदलना
मुझे भी अच्छा नहीं लगेगा
लेकिन मैं जानता हूँ कि ये मुस्कान
एक दिन खामोश सर्द मौसम में घुल जाएगी
आहिस्ता आहिस्ता…

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