रात में माटी पर गति को महसूस करती पड़ी है गेंद । पृथ्वी के सीने पर नाच कर आँखें खोले तारों को अपलक निहारती खेल की दुनिया रचती पड़ी है गेंद बच्चे को खोजती उसके नर्म पैरों की थकान सोखती फिलहाल गेंद के स्वप्न में बच्चा भी है और मैदान भी बच्चे को उसके गोल… Continue reading गेंद (एक) / अक्षय उपाध्याय
Author: poets
सीने में क्या है तुम्हारे / अक्षय उपाध्याय
कितने सूरज हैं तुम्हारे सीने में कितनी नदियाँ हैं कितने झरने हैं कितने पहाड़ हैं तुम्हारी देह में कितनी गुफ़ाएँ हैं कितने वृक्ष हैं कितने फल हैं तुम्हारी गोद में कितने पत्ते हैं कितने घोंसले हैं तुम्हारी आत्मा में कितनी चिड़ियाँ हैं कितने बच्चे हैं तुम्हारी कोख में कितने सपने हैं कितनी कथाएँ हैं तुम्हारे… Continue reading सीने में क्या है तुम्हारे / अक्षय उपाध्याय
तुम नहीं मिलती तो भी / अक्षय उपाध्याय
तुम नहीं मिलती तो भी मैं नदी तक जाता छूता उसके हृदय को गाता बचपन का कोई पुराना अधूरा गीत तुम नहीं मिलती तो भी तुम नहीं मिलती तो भी पहाड़ के साथ घंटों बतियाता वृक्षों का हाथ पकड़ ऊपर की ओर उठना सीखता बीस और इक्कीस की उमर की कोई न भूलने वाली घटना… Continue reading तुम नहीं मिलती तो भी / अक्षय उपाध्याय
अगर सचमुच यह औरत / अक्षय उपाध्याय
अगर सचमुच यह औरत इस साप्ताहिक के पन्ने से बाहर निकल आए अगर सचमुच यह औरत गरदन पकड़ कर चिल्लाए तो क्या मैं सच कहूँगा ? अगर सचमुच इस औरत के स्तन पूरे मुखपृष्ठ पर छा जाएँ और मेरे एकान्त में गनगनाएँ तो क्या मौं सुनूँगा ? अकेले में, सचमुच के अकेले में यह औरत… Continue reading अगर सचमुच यह औरत / अक्षय उपाध्याय
महाराज समझे कि ना / अक्षय उपाध्याय
अगड़म बम बगड़म बम तिरकिट धुम तिरकिट धुम धूम धूम धूम धूम नाचेगा नाचेगा मालिक वो नाचेगा नाच जमूरे नाच तू नाच जमूरे नाच तू नाचा हे नाचा हुज़ूर नाचा नाचा देखें तो देखें सरकार ज़रा देखें नाचा वो नाचा अगड़म बम बगड़म बम तिरकिट धुम तिरकिट धुम तिन्नाना, तिन्नाना तिन्नाना महाराज समझे कि ना… Continue reading महाराज समझे कि ना / अक्षय उपाध्याय
तानाशाह जब ही आता है / अक्षय उपाध्याय
तानाशाह जब भी आता है उसके साथ दुनिया की ख़ूबसूरत असंख्य चीज़ें होती हैं वह उन्हें दिखाता है जिनके पास सजाने के लिए कमरे हैं वे दौड़ते हैं तानाशाह जब भी आता है उसके साथ धर्म और जाति और ईश्वर होता है धर्मप्राण जनता और धर्म के कर्णधार लपकते हैं तानाशाह जब भी आता है… Continue reading तानाशाह जब ही आता है / अक्षय उपाध्याय
नेता (दो) / अक्षय उपाध्याय
अच्छा बेटा तू इतना अकड़ता है संतरी को मंत्री होने पर रगड़ता है फूँक मारते ही तू फूलेगा फूलेगा तू और एक ही दिन में पचास वर्षों की कमी छू लेगा कभी यहाँ कभी वहाँ मौसम के झूले पे झूलेगा बातों की सिक्कड़ में बँधी तेरी आत्मा चोर दरवाज़ों से साँस लेगी तहख़ानों में विश्राम… Continue reading नेता (दो) / अक्षय उपाध्याय
नेता (एक) / अक्षय उपाध्याय
मसान से फैले प्रदेश में मचान गाड़ नेता अब और बेतुकी नहीं हाँक पा रहे अब तो पिपरिया के, छोटके के पूछे गए ककहरा सवालों के जवाब में भी गाँधी टोपी भकुआ की तरह बबूर की ओर मुँह किए दाँत चियारती है वे जो कल तक शेरवानी की समझ से बकलोल-से दीखने वाले लोग समझे… Continue reading नेता (एक) / अक्षय उपाध्याय
चिड़िया (दो) / अक्षय उपाध्याय
वे नहीं जानते कैसे छोटी चिड़िया बड़े पंखों से उड़ान भरती है और आकाश में एक कोलाहल पैदा करती है चिड़िया जब भी गीत गाते हुए लंबे सफ़र पर होती है यो उसके साथ पूरी पृथ्वी का शोर और प्रेम होता है उसके नन्हें सपने होते हैं और चोंच में दबी हमारी कथाएँ होती हैं… Continue reading चिड़िया (दो) / अक्षय उपाध्याय
चिड़िया (एक) / अक्षय उपाध्याय
चिड़िया कहाँ जाती है आसमान में कहाँ जाती है वह दाने के लिए दाना कहाँ है किसका है पूछता है चूजा चिड़िया लौट आती है चुपचाप घोंसला किसका है घोंसले में अण्डे कौन देगा कौन पर निकालते हुए सेंकेगा अपनी संतानों को पूछती है चिड़िया वृक्ष ख़ामोश है धाँय धाँय, धाँय क्या हुआ ! क्या… Continue reading चिड़िया (एक) / अक्षय उपाध्याय