तानाशाह जब ही आता है / अक्षय उपाध्याय

तानाशाह जब भी आता है
उसके साथ दुनिया की ख़ूबसूरत असंख्य चीज़ें होती हैं
वह उन्हें दिखाता है
जिनके पास सजाने के लिए कमरे हैं

वे दौड़ते हैं

तानाशाह जब भी आता है
उसके साथ धर्म और जाति और ईश्वर होता है
धर्मप्राण जनता और धर्म के कर्णधार

लपकते हैं

तानाशाह जब भी आता है
एक नई दुनिया के ब्लू-प्रिंट के साथ आता है
तर्कहीन काल्पनिक एक जगमगाती दुनिया
के बारे में वह
उन्हें सुनाता है
जो संकरी गली से तत्काल राजपथ पर
चलना चाहते हैं

वे कुलबुलाते हैं

तानाशाह जब भी आता है
उसके साथ समूचे बग़ीचे के फूल होते हैं
वह हाथ में बाग़ को उठाए रखता है
बुद्धि देने वालों को पुचकारता
कला हाँकने वालों को गुहारता है
कोमल-करुण-भद्रजन
रोमांचित होते भहराते हैं

तानाशाह जब भी आता है
उसके साथ केवल एक चपाती होती है
वह भूख का भ्रम पैदा करता है
और उसके विलास में
केवल भरे पेट उछलते हैं

तानाशाह चाहे जब और जैसे आए
तानाशाह जाता एक तरह ही है
और
तानाशाह जाता ज़रूर है

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