जब मेरी उपस्थिति
मेरे न होने से बेहतर
लगने लगे
जब मैं एक भी शब्द कहने से पहले
दस बार सोचूँ
जब बच्चे की सहज किलकारी तक से
पड़ता हो किसी की नींद में खलल
और जब दोस्तों के अभाव में
करना पड़े एकान्त में
किसी पत्थर के साथ सलाह-मशवरा
तब मैं पड़ता हूँ संघर्ष में अकेला
और सघन अंधेरे में दबे पाँव
करता हूँ शहर से [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”अपना वतन छोड़कर दूसरे वतन में जा बसना”]हिजरत[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip]