सावन आवन हेरि सखी / घनानंद

सावन आवन हेरि सखी,
मनभावन आवन चोप विसेखी ।
छाए कहूँ घनआनँद जान,
सम्हारि की ठौर लै भूल न लेखी ॥
बूंदैं लगै, सब अंग दगै,
उलटी गति आपने पापन पेखी ।
पौन सों जागत आगि सुनी ही.
पै पानी सों लागत आँखिन देखी ॥

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *