शब्द-1 / एकांत श्रीवास्तव

शब्‍द आग हैं
जिनकी आँच में
सिंक रही है धरती
जिनकी रोशनी में
गा रहे हैं हम
काटते हुए एक लम्‍बी रात

शब्‍द पत्‍थर हैं
हमारे हाथ के
शब्‍द धार हैं
हमारे औजार की

हमारे हर दुख में हमारे साथ
शब्‍द दोस्‍त हैं
जिनसे कह सकते हैं हम
बिना किसी हिचक के
अपनी हर तकलीफ़

शब्‍द रूँधे हुए कंठ में
चढ़ते हुए गीत हैं
वसंत की खुशबू से भरे
चिडियों के सपने हैं शब्‍द

शब्‍द पौधे हैं
बनेंगे एक दिन पेड़
अंतरिक्ष से आँखें मिलायेंगे
सिर
झुका हुआ
लाचार धरती का ऊँचा उठायेंगे।

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