आँधी आ रही है / गोपालदास “नीरज”

आज आँधी आ रही है!

पथिक ने जो छोड़ दी थी,
आग बुझने जा रही थी,
पर सुलग कर फ़िर वही अब विश्व-विपिन जला रही!
आज आँधी आ रही!

जा रहे खग, पशु घरों को
किन्तु मैं जाऊँ कहाँ को,
जब कि मेरे हृदय ही में हाय, यह मंडरा रही है!
आज आँधी आ रही है!

काँपते हैं प्राण दुर्बल
हो रही है घोर हलचल,
वायु इतनी आ रही, पर प्राण-वायु जा रही है!
आज आँधी आ रही है!

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