भूखी माँ, भूखा बच्चा / अली सरदार जाफ़री

मेरे नन्हे, मिरे मासूम मिरे नूरे-नज़र
आ कि माँ अपने कलेजे से लगा ले तुझको
अपनी आग़ोशे-मुहब्बत में सुला ले तुझको
तेरे होंटों का यह जादू था कि सीने से मिरे
नदियाँ दूध की वह निकली थी
छातियाँ आज मिरी सूख गयी हैं लेकिन
आँखें सूखी नहीं अब तक मिरे लाल
दर्द का चश्म-ए-बेताब रवाँ है इनसे
मेरे अश्कों ही से तू प्यास बुझा ले अपनी
सुनती हूँ खेतों में अब नाज नहीं उग सकता
काँग्रेस राज में सोना ही फला करता है
गाय के थन से निकलती है चमकती चाँदी
और तिजोरी की दराज़ों में सिमट जाती है

चाँद से दूध नहीं बहता है
तारे चावल हैं न गेहूँ न ज्वार
वरना मैं तेरे लिए चाँद सितारे लाती
मेरे नन्हे, मिरे मासूम मिरे नूरे-नज़र
आ कि माँ अपने कलेजे से लगा ले तुझको
अपनी आग़ोशे-मुहब्बत मे सुला ले तुझको

सो भी जा मेरी महब्बत की कली
मेरी जवानी के गुलाब
मेरे इफ़लास१ के हीरे सो जा
नींद में आएँगी हँसती हुई परियाँ तिरे पास
बोतलें दूध की शरबत के कटोरे लेकर
जाने आवाज़ की लोरी थी कि परियों का तिलस्म
नींद-सी आने लगी बच्चे को
खिंच गयी नीलगूँ होंटों पे ख़मोशी की लकीर
मुट्ठियाँ खोल दीं और मूँद लीं आँखें अपनी
यूँ ढलकने लगा मनका जैसे
शाम के ग़ार में सूरज गिर जाए

झुक गयी माँ की जबीं बेटे की पेशानी पर
अब न आँसू थे, न सिसकी थी न लोरी न कलाम
एक सन्नाटा था
एक सन्नाटा था तारीको-तवील२

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