अनाज / अली सरदार जाफ़री

मेरी आशिक़ हैं किसानों की हसीं कन्याएँ जिनके आँचल ने मुहब्बत से उठाया मुझको खेत को साफ़ किया, नर्म किया मिट्टी को और फिर कोख़ में धरती की सुलाया मुझको ख़ाक-दर-ख़ाक हर-इक तह में टटोला लेकिन मौत के ढूँढ़ते हाथों ने न पाया मुझको ख़ाक से लेके उठा मुझको मिरा ज़ौके़-नुमू[1] सब्ज़ कोंपल ने हथेली… Continue reading अनाज / अली सरदार जाफ़री

भूखी माँ, भूखा बच्चा / अली सरदार जाफ़री

मेरे नन्हे, मिरे मासूम मिरे नूरे-नज़र आ कि माँ अपने कलेजे से लगा ले तुझको अपनी आग़ोशे-मुहब्बत में सुला ले तुझको तेरे होंटों का यह जादू था कि सीने से मिरे नदियाँ दूध की वह निकली थी छातियाँ आज मिरी सूख गयी हैं लेकिन आँखें सूखी नहीं अब तक मिरे लाल दर्द का चश्म-ए-बेताब रवाँ… Continue reading भूखी माँ, भूखा बच्चा / अली सरदार जाफ़री

नींद / अली सरदार जाफ़री

अपने बच्चों की पहली सालगिरह पर ================== रात ख़ूबसूरत है नींद क्यों नहीं आती दिन की ख़श्मगीं नज़रें खो गयीं सियाही में आहनी कडो़ का शोर बेडि़यों की झनकारें कै़दियों की साँसों की तुन्दो-तेज़ आवाज़ें जेलरों की बदकारी गालियों की बौछारें बेबसी की खा़मोशी खा़मुशी की फ़रयादें तहनशीं अँधेरे में शब की शोख़ दोशीज़ा१ खा़रदार… Continue reading नींद / अली सरदार जाफ़री

तुम्हारी आँखें / अली सरदार जाफ़री

तुम्हारी आँखें हसीन, शफ़्फ़ाफ़, मुस्कराती, जवान आँखें लरज़ती पलकों की चिलमनों में शहाबी चेहरे पे अबरुओं की कमाँ के नीचे तुम्हारी आँखें वो जिनकी नज़रों के ठण्डे साये में मेरी उल्फ़त मिरी जवानी की रात परवान चढ़ रही थी तुम्हारी आँखें अँधेरी रातों में जो सितारों की रौशनी से फ़ज़ाए-ज़िंदाँ में झाँकती हैं मैं लिख… Continue reading तुम्हारी आँखें / अली सरदार जाफ़री

पत्थर की दीवार / अली सरदार जाफ़री

क्या कहूँ भयानक है या हसीं है यह मंज़र ख़्वाब है कि बेदारी कुछ पता नहीं चलता फूल भी है साये भी खा़क भी है पानी भी आदमी भी मेहनत भी गीत भी हैं आँसू भी फिर भी एक ख़ामोशी रूहो-दिल की तनहाई इक तवील [1]सन्नाटा जैसे साँप लहराये माहो-साल आते हैं और दिन निकलते… Continue reading पत्थर की दीवार / अली सरदार जाफ़री

अवध की ख़ाके-हसीं / अली सरदार जाफ़री

गुज़रते बरसात आते जाड़ों के नर्म लम्हे हवाओं में तितलियों के मानिन्द उड़ रहे हैं मैं अपने सीने में दिल की आवाज़ सुन रहा हूँ रगों के अन्दर लहू की बूँदें मचल रही हैं मिरे तसव्वुर के ज़ख़्म-ख़ुर्दा उफ़क[1] से यादों के कारवाँ यूँ गुज़र रहे हैं कि जैसे तारीक[2] शब[3] के तारीक आसमाँ से… Continue reading अवध की ख़ाके-हसीं / अली सरदार जाफ़री

एशिया जाग उठा / अली सरदार जाफ़री

यह एशिया की ज़मीं, तमद्दुन की कोख, तहज़ीब का वतन है यहीं पे सूरज ने आँख खोली यहीं पे इन्सानियत की पहली सहर ने रूख़ से नका़ब उलटा यहीं से अगले युगों की शम्‌ओं ने इल्म-ओ-हिकमत का नूर पाया इसी बलन्दी से वेद ने ज़मज़मे सुनाये यहीं से गौतम ने आदमी की समानता का सबक़… Continue reading एशिया जाग उठा / अली सरदार जाफ़री

हाथों का तराना / अली सरदार जाफ़री

इन हाथों की ताज़ीम[1] करो इन हाथों की तकरीम[2] करो दुनिया को चलाने वाले हैं इन हाथों को तस्लीम[3] करो तारीख़ के और मशीनों के, पहियों की रवानी इनसे है तहज़ीब की और तमद्दुन की, भरपूर जवानी इनसे है दुनिया का फ़साना इनसे है, इन्साँ की कहानी इनसे है इन हाथों की ताज़ीम[4] करो सदियों… Continue reading हाथों का तराना / अली सरदार जाफ़री

तरान-ए-उर्दू / अली सरदार जाफ़री

हमारी प्यारी ज़बान उर्दू हमारे नग़्मों की जान उर्दू हसीन दिलकश जवान उर्दू यह वह ज़बाँ है कि जिसको गंगा के जल से पाकीज़गी मिली है अवध की ठण्डी हवा के झोंकों में जिसके दिल की कली खिली है जो शे’रो-नग़मा के खुल्दज़ारों मे आज कोयल-सी कूकती है हमारी प्यारी ज़बान उर्दू हमारे नग़्मों की… Continue reading तरान-ए-उर्दू / अली सरदार जाफ़री