दिल पे छाया रहा उमस की तरह / बशीर बद्र

दिल पे छाया रहा उमस की तरह
एक लम्हा था सौ बरस की तरह

वो मोहब्बत की तरह पिघलेगी
मैं भी मर जाऊँगा हवस की तरह

रात सर पर लिये हूँ जंगल में
रास्ते की ख़राब बस की तरह

आत्मा बेज़बान मैना है
माटी का तन क़फ़स की तरह

ख़ानक़ाहों में ख़ाक़ उड़ती है
उर्दू वालों के कैम्पस की तरह

मौत की वादियों से गुज़रूँगा
मैं पहाड़ों की एक बस की तरह

(१९८०)

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