सरे राह कुछ भी कहा नहीं कभी उसके घर में गया नहीं / बशीर बद्र

सरे राह कुछ भी कहा नहीं, कभी उसके घर में गया नहीं
मैं जनम-जनम से उसी का हूँ, उसे आज तक ये पता नहीं

उसे पाक़ नज़रों से चूमना भी इबादतों में शुमार है
कोई फूल लाख क़रीब हो, कभी मैंने उसको छुआ नहीं

ये ख़ुदा की देन अज़ीब है, कि इसी का नाम नसीब है
जिसे तूने चाहा वो मिल गया, जिसे मैंने चाहा वो मिला नहीं

इसी शहर में कई साल से मेरे कुछ क़रीबी अज़ीज़ हैं
उन्हें मेरी कोई ख़बर नहीं, मुझे उनका कोई पता नहीं

(१९७६)

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