जिस ओर देखूँ बस / माखनलाल चतुर्वेदी

जिस ओर देखूँ बस
अड़ी हो तेरी सूरत सामने,
जिस ओर जाऊँ रोक लेवे
तेरी मूरत सामने।

छुपने लगूँ तुझसे मुझे
तुझ बिन ठिकाना है नहीं,
मुझसे छुपे तू जिस जगह
बस मैं पकड़ पाऊँ वहीं।

मैं कहीं होऊँ न होऊँ
तू मुझे लाखों में हो,
मैं मिटूँ जिस रोज मनहर
तू मेरी आँखों में हो।

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