कारी कूर कोकिला / घनानंद

कारी कूर कोकिल कहाँ को बैर काढ़ति री,
कूकि कूकि अबही करेजो किन कोरि रै.
पेंड़ परै पापी ये कलापी निसि द्यौस ज्यों ही,
चातक रे घातक ह्वै तुहू कान फोरि लै.
आँनंद के घन प्रान जीवन सुजान बिना,
जानि कै अकेली सब घरोदल जोरि लै.
जौं लौं करै आवन बिनोद बरसावन वे,
तौ लौं रे डरारे बजमारे घन घोरि लै.

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