कहानी / रामनरेश त्रिपाठी

आँख मूँदिए तो निज घर की मिलेगी राह
आँख खोलते ही जग स्वप्न है विरह का।
मन खोइए तो कुछ पाइए अनोखा धन
हानि में है लाभ यह अजब तरह का॥
आँख लगते ही फिर आँख लगती ही नहीं
सुख है विचित्र इस घर के कलह का।
काल की कही हुई कहानी है जगत यह
मनुज इसी में रहता है नित बहका॥

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