एकांतसंगी / रामनरेश त्रिपाठी

आशा सुख शांति की दिखाई पड़ती है नहीं
जम रहे शोक हम दुख से सहम रहे।
भूख गई प्यास गई नींद फिर आई नहीं
जीवन के साथी कौन जाने कहाँ थम रहे॥
कौन विपदा में सुधि लेता है किसी की हाय!
माना अपना था जिन्हें वे तो निरे भ्रम रहे।
एक बस हम रहे, और कुछ गम रहे
दम आता-जाता रहा आँसू हरदम रहे॥

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