आ गई थी याद तब / गोपालदास “नीरज”

आ गई थी याद तब किस शाप की?

कोयली को दे मधुर संगीत-स्वर
सृष्टि की सीमान्त में सिन्दूर भर
धूल को कुमकुम बना, बिखरा सुरा
चूम कलियों के अधर, गुंजार कर

अब धरा पर देह धर रितुपति चला
मुस्कुराए अश्रु औ’ रोई हँसी!
आ गई थी याद तब किस शाप की?

ले नयन में कामना का तृप्ति जल
डाल मुख पर प्रीति का घूँघट नवल
साज सपनों की सुहागिन चूनरी
रंग महावर से मुखर पायल चपल

जब पिया घर रूप की दुल्हन चली
मुस्कराई माँग, रोई कंचुकी!
आ गई थी याद तब किस शाप की?

अश्रु से आराध्य के धो-धो चरण
फ़ूल से निशि दिन चढ़ा उजले सपन
गूँथ गीतों का सजल गलहार-सा
वर्तिका सी बार सब साधें तरुण

भक्त जब वरदान के क्षण सो गया
मुस्कुराई मूर्ति, रोई आरती!
आ गई थी याद तब किस शाप की?

हृदय को कर चूर, सुधियों को सुला
मोतियों की हाट, मरूस्थल में गला
ओढ़ अनचाही निठुरता का कफ़न
स्नेह का काजल नयन-जल में घुला

अश्रु-पथ जब प्रीति की अर्थी उठी
मुस्कुराई नर्तकी, रोई सती!
आ गई थी याद तब किस शाप की?

बाहु में वरदान भर निर्माण के
लोचनों में खण्ड शत दिनमान के
ओठ में मरू, वक्ष में ज्वालामुखी
कण्ठ में झोंके लिए तूफ़ान के

श्वास-यात्रा पर बढ़ी उठ देह जब
मुस्कुराई मृत्यु, रोई ज़िन्दगी।
आ गई थी याद तब किस शाप की?

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