अवधूता युगन युगन हम योगी / कबीर

अवधूता युगन युगन हम योगी आवै ना जाय मिटै ना कबहूं सबद अनाहत भोगी सभी ठौर जमात हमरी सब ही ठौर पर मेला हम सब माय सब है हम माय हम है बहुरी अकेला हम ही सिद्ध समाधि हम ही हम मौनी हम बोले रूप सरूप अरूप दिखा के हम ही हम तो खेलें कहे… Continue reading अवधूता युगन युगन हम योगी / कबीर

मोको कहां ढूँढे रे बन्दे / कबीर

मोको कहां ढूँढे रे बन्दे मैं तो तेरे पास में ना तीरथ मे ना मूरत में ना एकान्त निवास में ना मंदिर में ना मस्जिद में ना काबे कैलास में मैं तो तेरे पास में बन्दे मैं तो तेरे पास में ना मैं जप में ना मैं तप में ना मैं बरत उपास में ना… Continue reading मोको कहां ढूँढे रे बन्दे / कबीर

सुपने में सांइ मिले / कबीर

सुपने में सांइ मिले सोवत लिया लगाए आंख न खोलूं डरपता मत सपना है जाए सांइ मेरा बहुत गुण लिखे जो हृदय माहिं पियूं न पाणी डरपता मत वे धोय जाहिं नैना भीतर आव तू नैन झांप तोहे लेउं न मैं देखूं और को न तेही देखण देउं नैना अंतर आव तू ज्यौ हौं नैन… Continue reading सुपने में सांइ मिले / कबीर

माया महा ठगनी हम जानी / कबीर

माया महा ठगनी हम जानी।। तिरगुन फांस लिए कर डोले बोले मधुरे बानी।। केसव के कमला वे बैठी शिव के भवन भवानी।। पंडा के मूरत वे बैठीं तीरथ में भई पानी।। योगी के योगन वे बैठी राजा के घर रानी।। काहू के हीरा वे बैठी काहू के कौड़ी कानी।। भगतन की भगतिन वे बैठी बृह्मा… Continue reading माया महा ठगनी हम जानी / कबीर

अंखियां तो छाई परी / कबीर

अंखियां तो छाई परी पंथ निहारि निहारि जीहड़ियां छाला परया नाम पुकारि पुकारि बिरह कमन्डल कर लिये बैरागी दो नैन मांगे दरस मधुकरी छकै रहै दिन रैन सब रंग तांति रबाब तन बिरह बजावै नित और न कोइ सुनि सकै कै सांई के चित

मेरी चुनरी में परिगयो दाग पिया / कबीर

मेरी चुनरी में परिगयो दाग पिया। पांच तत की बनी चुनरिया सोरह सौ बैद लाग किया। यह चुनरी मेरे मैके ते आयी ससुरे में मनवा खोय दिया। मल मल धोये दाग न छूटे ग्यान का साबुन लाये पिया। कहत कबीर दाग तब छुटि है जब साहब अपनाय लिया।

कौन ठगवा नगरिया लूटल हो / कबीर

कौन ठगवा नगरिया लूटल हो ।। चंदन काठ के बनल खटोला ता पर दुलहिन सूतल हो। उठो सखी री माँग संवारो दुलहा मो से रूठल हो। आये जम राजा पलंग चढ़ि बैठा नैनन अंसुवा टूटल हो चार जाने मिल खाट उठाइन चहुँ दिसि धूं धूं उठल हो कहत कबीर सुनो भाई साधो जग से नाता… Continue reading कौन ठगवा नगरिया लूटल हो / कबीर

उपदेश का अंग / कबीर

बैरागी बिरकत भला, गिरही चित्त उदार । दुहुं चूका रीता पड़ैं , वाकूं वार न पार ॥1॥ भावार्थ – बैरागी वही अच्छा, जिसमें सच्ची विरक्ति हो, और गृहस्थ वह अच्छा, जिसका हृदय उदार हो । यदि वैरागी के मन में विरक्ति नहीं, और गृहस्थ के मन में उदारता नहीं, तो दोनों का ऐसा पतन होगा… Continue reading उपदेश का अंग / कबीर

सम्रथाई का अंग / कबीर

जिसहि न कोई तिसहि तू, जिस तू तिस ब कोइ । दरिगह तेरी सांईयां , ना मरूम कोइ होइ ॥1॥ भावार्थ – जिसका कहीं भी कोई सहारा नहीं, उसका एक तू ही सहारा है । जिसका तू हो गया, उससे सभी नाता जोड़ लेते हैं साईं ! तेरी दरगाह से, जो भी वहाँ पहुँचा, वह… Continue reading सम्रथाई का अंग / कबीर

जीवन-मृतक का अंग / कबीर

`कबीर मन मृतक भया, दुर्बल भया सरीर । तब पैंडे लागा हरि फिरै, कहत कबीर ,कबीर ॥1॥ भावार्थ – कबीर कहते हैं -मेरा मन जब मर गया और शरीर सूखकर कांटा हो गया, तब, हरि मेरे पीछे लगे फिरने मेरा नाम पुकार-पुकारकर-`अय कबीर ! अय कबीर !’- उलटे वह मेरा जप करने लगे । जीवन… Continue reading जीवन-मृतक का अंग / कबीर