राम-नाम कै पटंतरै, देबे कौं कछु नाहिं । क्या ले गुर संतोषिए, हौंस रही मन माहिं ॥1॥ भावार्थ – सद्गुरु ने मुझे राम का नाम पकड़ा दिया है । मेरे पास ऐसा क्या है उस सममोल का, जो गुरु को दूँ ?क्या लेकर सन्तोष करूँ उनका ? मन की अभिलाषा मन में ही रह गयी… Continue reading गुरुदेव का अंग / कबीर
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घूँघट के पट / कबीर
घूँघट का पट खोल रे, तोको पीव मिलेंगे। घट-घट मे वह सांई रमता, कटुक वचन मत बोल रे॥ धन जोबन का गरब न कीजै, झूठा पचरंग चोल रे। सुन्न महल मे दियना बारिले, आसन सों मत डोल रे।। जागू जुगुत सों रंगमहल में, पिय पायो अनमोल रे। कह कबीर आनंद भयो है, बाजत अनहद ढोल… Continue reading घूँघट के पट / कबीर
रे दिल गाफिल गफलत मत कर / कबीर
रे दिल गाफिल गफलत मत कर, एक दिना जम आवेगा ॥ सौदा करने या जग आया, पूँजी लाया, मूल गॅंवाया, प्रेमनगर का अन्त न पाया, ज्यों आया त्यों जावेगा ॥ १॥ सुन मेरे साजन, सुन मेरे मीता, या जीवन में क्या क्या कीता, सिर पाहन का बोझा लीता, आगे कौन छुडावेगा ॥ २॥ परलि पार… Continue reading रे दिल गाफिल गफलत मत कर / कबीर
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में / कबीर
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥ जो सुख पाऊँ राम भजन में सो सुख नाहिं अमीरी में मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥ भला बुरा सब का सुनलीजै कर गुजरान गरीबी में मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥ आखिर यह तन छार मिलेगा कहाँ फिरत मग़रूरी में मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी… Continue reading मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में / कबीर
तूने रात गँवायी सोय के दिवस गँवाया खाय के / कबीर
तूने रात गँवायी सोय के दिवस गँवाया खाय के । हीरा जनम अमोल था कौड़ी बदले जाय ॥ सुमिरन लगन लगाय के मुख से कछु ना बोल रे । बाहर का पट बंद कर ले अंतर का पट खोल रे । माला फेरत जुग हुआ गया ना मन का फेर रे । गया ना मन… Continue reading तूने रात गँवायी सोय के दिवस गँवाया खाय के / कबीर
केहि समुझावौ सब जग अन्धा / कबीर
केहि समुझावौ सब जग अन्धा ॥ इक दुइ होयॅं उन्हैं समुझावौं, सबहि भुलाने पेटके धन्धा । पानी घोड पवन असवरवा, ढरकि परै जस ओसक बुन्दा ॥ १॥ गहिरी नदी अगम बहै धरवा, खेवन- हार के पडिगा फन्दा । घर की वस्तु नजर नहि आवत, दियना बारिके ढूँढत अन्धा ॥ २॥ लागी आगि सबै बन जरिगा,… Continue reading केहि समुझावौ सब जग अन्धा / कबीर
झीनी झीनी बीनी चदरिया / कबीर
झीनी झीनी बीनी चदरिया ॥ काहे कै ताना काहे कै भरनी, कौन तार से बीनी चदरिया ॥ १॥ इडा पिङ्गला ताना भरनी, सुखमन तार से बीनी चदरिया ॥ २॥ आठ कँवल दल चरखा डोलै, पाँच तत्त्व गुन तीनी चदरिया ॥ ३॥ साँ को सियत मास दस लागे, ठोंक ठोंक कै बीनी चदरिया ॥ ४॥ सो… Continue reading झीनी झीनी बीनी चदरिया / कबीर
दिवाने मन, भजन बिना दुख पैहौ / कबीर
दिवाने मन, भजन बिना दुख पैहौ ॥ पहिला जनम भूत का पै हौ, सात जनम पछिताहौउ। काँटा पर का पानी पैहौ, प्यासन ही मरि जैहौ ॥ १॥ दूजा जनम सुवा का पैहौ, बाग बसेरा लैहौ । टूटे पंख मॅंडराने अधफड प्रान गॅंवैहौ ॥ २॥ बाजीगर के बानर होइ हौ, लकडिन नाच नचैहौ । ऊॅंच नीच… Continue reading दिवाने मन, भजन बिना दुख पैहौ / कबीर
भजो रे भैया राम गोविंद हरी / कबीर
भजो रे भैया राम गोविंद हरी । राम गोविंद हरी भजो रे भैया राम गोविंद हरी ॥ जप तप साधन नहिं कछु लागत, खरचत नहिं गठरी ॥ संतत संपत सुख के कारन, जासे भूल परी ॥ कहत कबीर राम नहीं जा मुख, ता मुख धूल भरी ॥
करम गति टारै नाहिं टरी / कबीर
करम गति टारै नाहिं टरी ॥ मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी, सिधि के लगन धरि । सीता हरन मरन दसरथ को, बनमें बिपति परी ॥ १॥ कहॅं वह फन्द कहाँ वह पारधि, कहॅं वह मिरग चरी । कोटि गाय नित पुन्य करत नृग, गिरगिट-जोन परि ॥ २॥ पाण्डव जिनके आप सारथी, तिन पर बिपति परी… Continue reading करम गति टारै नाहिं टरी / कबीर