मन रे राम सुमिरि राम सुमिरि राम सुमिरि भाई। राम नाम सुमिरन बिनै, बूड़त है अधिकाई॥टेक॥ दारा सुत गेह नेह, संपति अधिकाई॥ यामैं कछु नांहि तेरौ, काल अवधि आई॥ अजामेल गज गनिका, पतित करम कीन्हाँ॥ तेऊ उतरि पारि गये, राम नाम लीन्हाँ॥ स्वांन सूकर काग कीन्हौ, तऊ लाज न आई॥ राम नाम अंमृत छाड़ि काहे… Continue reading राग मारू / पद / कबीर
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राग केदारौ / पृष्ठ – २ / पद / कबीर
चलत कत टेढौं टेढौं रे। नउँ दुवार नरक धरि मूँदे, तू दुरगंधि को बैढी रे॥ जे जारे तौ होई भसमतन, तामे कहाँ भलाई॥ सूकर स्वाँन काग कौ भखिन, रहित किरम जल खाई। फूटे नैन हिरदै नाहीं सूझै, मति एकै नहीं जाँनी॥ माया मोह ममिता सूँ बाँध्यो, बूडि मूवो बिन पाँनी॥ बारू के घरवा मैं बैठी,… Continue reading राग केदारौ / पृष्ठ – २ / पद / कबीर
राग केदारौ / पृष्ठ – १ / पद / कबीर
सार सुख पाइये रे, रंगि रमहु आत्माँराँम॥टेक॥ बनह बसे का कीजिये, जे मन नहीं तजै बिकार। घर बन तत समि जिनि किया ते बिरला संसार॥ का जटा भसम लेपन किये, कहा गुफा मैं बास। मन जीत्या जग जीतिये, जौ बिषया रहै उदास॥ सहज भाइ जे ऊपजै, ताका किसा माँन अभिमान। आपा पर समि चीनियैं, तब… Continue reading राग केदारौ / पृष्ठ – १ / पद / कबीर
राग सोरठि / पृष्ठ – ४ / पद / कबीर
मन रे आइर कहाँ गयौ, ताथैं मोहि वैराग भयौ॥टेक॥ पंच तत ले काया कीन्हीं, तत कहा ले कीन्हाँ। करमौं के बसि जीव कहत है, जीव करम किनि दीन्हाँ॥ आकास गगन पाताल गगन दसौं दिसा गगन रहाई ले। आँनँद मूल सदा परसोतम, घट बिनसै गगन न जाई ले॥ हरि मैं तन हैं तन मैं हरि है,… Continue reading राग सोरठि / पृष्ठ – ४ / पद / कबीर
राग सोरठि / पृष्ठ – ३ / पद / कबीर
अब मैं पायौ राजा राम सनेही॥टेक॥ जा बिनु दुख पावै मेरी देही॥टेक॥ वेद पुरान कहत जाकी साखी, तीरथि ब्रति न छूटै जंम की पासी॥ जाथैं जनम लहत नर आगैं, पाप पुंनि दोऊ भ्रम लागै॥ कहै कबीर सोई तत जागा, मन भया मगन प्रेम रस लागा॥283॥ बिरहिनी फिरै है नाम अधीरा, उपजि बिनाँ कछू समझि न… Continue reading राग सोरठि / पृष्ठ – ३ / पद / कबीर
राग सोरठि / पृष्ठ – २ / पद / कबीर
इब न रहूँ माटी के घर मैं, इब मैं जाइ रहूँ मिलि हरि मैं॥टेक॥ छिनहर घर अरु झिरहर टाटी, धन गरजत कंपै मेरी छाती॥ दसवैं द्वारि लागि गई तारी, दूरि गवन आवन भयौ भारी॥ चहुँ दिसि बैठे चारि पहरिया, जागत मुसि नये मोर नगरिया॥ कहै कबीर सुनहु रे लोई, भाँनड़ घड़ण सँवारण सोई॥273॥ कबीर बिगर्या… Continue reading राग सोरठि / पृष्ठ – २ / पद / कबीर
राग सोरठि / पृष्ठ – १ / पद / कबीर
हरि को नाम न लेइ गँवारा, क्या सोंचे बारंबारा॥टेक॥ पंच चोर गढ़ मंझा, गड़ लूटै दिवस रे संझा॥ जौ गढ़पति मुहकम होई, तौ लूटि न सकै कोई॥ अँधियारै दीपक चहिए, तब बस्त अगोचर लहिये॥ जब बस्त अगोचर पाई, तब दीपक रह्या समाई॥ जौ दरसन देख्या चाहिये, तौ दरपन मंजत रहिये॥ जब दरपन लागै कोई, तब… Continue reading राग सोरठि / पृष्ठ – १ / पद / कबीर
राग आसावरी / पृष्ठ – ६ / पद / कबीर
चेतनि देखै रे जग धंधा, राम नाम का मरम न जाँनैं, माया कै रसि अंधा॥टेक॥ जतमत हीरू कहा ले आयो, मरत कहा ले जासी। जैसे तरवर बसत पँखेरू, दिवस चारि के बासी॥ आपा थापि अवर कौ निंदै, जन्मत हो जड़ काटी। हरि को भगति बिना यहु देही, धब लौटैे ही फाटी॥ काँम क्रोध मोह मद… Continue reading राग आसावरी / पृष्ठ – ६ / पद / कबीर
राग आसावरी / पृष्ठ – ५ / पद / कबीर
मेरी मेरी करताँ जनम गयौ, जनम गयौ पर हरि न कह्यौ॥टेक॥ बारह बरस बालापन खोयौ, बीस बरस कछु तप न कयौ। तीन बरस कै राम न सुमिरौं, फिरि पछितानौं बिरध भयो॥ आयौ चोर तुरंग मुसि ले गयौ, मोरी राखत मगध फिरै॥ सीस चरन कर कंपन लागै, नैन नीर अस राल बहै। जिभ्या बचन सूध नहीं… Continue reading राग आसावरी / पृष्ठ – ५ / पद / कबीर
राग आसावरी / पृष्ठ – ४ / पद / कबीर
मन कै मैलौ बाहरि ऊजलौ किसी रे, खाँडे की धार जन कौ धरम इसी रे॥टेक॥ हिरदा कौ बिलाव नैन बगध्यानी, ऐसी भगति न होइ रे प्रानी॥ कपट की भगति करै जिन कोई, अंत की बेर बहुत दुख होई॥ छाँड़ि कपट भजौ राम राई, कहै कबीर तिहुँ लोक बड़ाई॥233॥ चौखौ वनज ब्यौपार, आइनै दिसावरि रे राम… Continue reading राग आसावरी / पृष्ठ – ४ / पद / कबीर