रहना नहिं देस बिराना है / कबीर

रहना नहिं देस बिराना है। यह संसार कागद की पुडिया, बूँद पडे गलि जाना है। यह संसार काँटे की बाडी, उलझ पुलझ मरि जाना है॥ यह संसार झाड और झाँखर आग लगे बरि जाना है। कहत ‘कबीर सुनो भाई साधो, सतुगरु नाम ठिकाना है॥

मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै / कबीर

मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै। हीरा पायो गाँठ गँठियायो, बार-बार वाको क्यों खोलै। हलकी थी तब चढी तराजू, पूरी भई तब क्यों तोलै। सुरत कलाली भई मतवाली, मधवा पी गई बिन तोले। हंसा पायो मानसरोवर, ताल तलैया क्यों डोलै। तेरा साहब है घर माँहीं बाहर नैना क्यों खोलै। कहै ‘कबीर सुनो भई साधो, साहब… Continue reading मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै / कबीर

काहे री नलिनी तू कुमिलानी / कबीर

काहे री नलिनी तू कुमिलानी। तेरे ही नालि सरोवर पानी॥ जल में उतपति जल में बास, जल में नलिनी तोर निवास। ना तलि तपति न ऊपरि आगि, तोर हेतु कहु कासनि लागि॥ कहे ‘कबीर जे उदकि समान, ते नहिं मुए हमारे जान।

सहज मिले अविनासी / कबीर

पानी बिच मीन पियासी। मोहि सुनि सुनि आवत हाँसी ।। आतम ग्यान बिना सब सूना, क्या मथुरा क्या कासी । घर में वसत धरीं नहिं सूझै, बाहर खोजन जासी ।। मृग की नाभि माँहि कस्तूरी, बन-बन फिरत उदासी । कहत कबीर, सुनौ भाई साधो, सहज मिले अविनासी ।।

साधो, देखो जग बौराना / कबीर

साधो, देखो जग बौराना । साँची कही तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना । हिन्दू कहत,राम हमारा, मुसलमान रहमाना । आपस में दौऊ लड़ै मरत हैं, मरम कोई नहिं जाना । बहुत मिले मोहि नेमी, धर्मी, प्रात करे असनाना । आतम-छाँड़ि पषानै पूजै, तिनका थोथा ज्ञाना । आसन मारि डिंभ धरि बैठे, मन में बहुत… Continue reading साधो, देखो जग बौराना / कबीर

एकै कुँवा पंच पनिहार / कबीर

एकै कुँवा पंच पनिहारी। एकै लेजु भरै नो नारी॥ फटि गया कुँआ विनसि गई बारी। विलग गई पाँचों पनिहारी॥

देखि-देखि जिय अचरज होई / कबीर

देखि-देखि जिय अचरज होई यह पद बूझें बिरला कोई॥ धरती उलटि अकासै जाय, चिउंटी के मुख हस्ति समाय। बिना पवन सो पर्वत उड़े, जीव जन्तु सब वृक्षा चढ़े। सूखे सरवर उठे हिलोरा, बिनु जल चकवा करत किलोरा। बैठा पण्डित पढ़े कुरान, बिन देखे का करत बखान। कहहि कबीर यह पद को जान, सोई सन्त सदा… Continue reading देखि-देखि जिय अचरज होई / कबीर

मँड़ये के चारन समधी दीन्हा / कबीर

मँड़ये के चारन समधी दीन्हा, पुत्र व्यहिल माता॥ दुलहिन लीप चौक बैठारी। निर्भय पद परकासा॥ भाते उलटि बरातिहिं खायो, भली बनी कुशलाता। पाणिग्रहण भयो भौ मुँडन, सुषमनि सुरति समानी, कहहिं कबीर सुनो हो सन्तो, बूझो पण्डित ज्ञानी॥

राजा के जिया डाहें / कबीर

राजा के जिया डाहें, सजन के जिया डाहें ईहे दुलहिनिया बलम के जिया डाहें। चूल्हिया में चाउर डारें हो हँड़िया में गोंइठी चूल्हिया के पछवा लगावतड़ी लवना। ईहे दुलहिनिया … अँखियाँ में सेनुर कइली हो, पिठिया पर टिकुली धइ धई कजरा एँड़िये में पोतें। ईहे दुलहिनिया … सँझवे के सुत्तल भिनहिये के जागें ठीक दुपहरिया… Continue reading राजा के जिया डाहें / कबीर

राम बिनु / कबीर

राम बिनु तन को ताप न जाई। जल में अगन रही अधिकाई॥ राम बिनु तन को ताप न जाई॥ तुम जलनिधि मैं जलकर मीना। जल में रहहि जलहि बिनु जीना॥ राम बिनु तन को ताप न जाई॥ तुम पिंजरा मैं सुवना तोरा। दरसन देहु भाग बड़ मोरा॥ राम बिनु तन को ताप न जाई॥ तुम… Continue reading राम बिनु / कबीर