ज्ञानीजन / ऋतुराज

ज्ञान के आतंक में मेरे घर का अन्धेरा बाहर निकलने से डरता है ज्ञानीजन हँसते हैं बन्द खिड़कियाँ देखकर उधड़े पलस्तर पर बने अकारण भुतैले चेहरों पर और सीलन से बजबजाती सीढ़ियों की रपटन पर ज्ञान के साथ जिनके पास आई है अकूत सम्पदा और जो कृपण हैं मुझ जैसे दूसरों पर दृष्टिपात करने तक… Continue reading ज्ञानीजन / ऋतुराज

सामान / ऋतुराज

वह ट्रेन में चढ़ गया था उसे उतार लिया गया उसका सामान दूसरे डिब्बे में था वह डिब्बा किसी अनजाने स्टेशन पर कट गया वह शख़्स कहीं और था उसका सामान कहीं और उससे कहा गया घर बैठे उतनी ही मज़दूरी देंगे और पीने को दारू बस, मतदान के दिन पहुँच कर वोट पंजे पर… Continue reading सामान / ऋतुराज

सेवाग्राम / ऋतुराज

कई तरह के समय थे वे लोग सबके दस्तावेज तैयार करने में लगे थे कुछ ही पढ़े जाने थे मेरे समय में दूसरों के समय ने प्राणघातक चीरा लगाया उनकी खबरों ने मारकाट की विवश एक लड़की का समय था जिसमें चीरफाड़ करते रहे खबरनवीस और राजनीतिज्ञ उन राजनीतिज्ञों के समय में होती रहीं परमविशिष्ट… Continue reading सेवाग्राम / ऋतुराज

माँ का दुःख / ऋतुराज

कितना प्रामाणिक था उसका दुःख लड़की को दान में देते वक्त जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो लड़की अभी सयानी नहीं थी अभी इतनी भोली सरल थी कि उसे सुख का आभास होता था लेकिन दुःख बाँचना नहीं आता था पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की कुछ तुकों और लयबद्ध पंक्तियों की माँ ने कहा… Continue reading माँ का दुःख / ऋतुराज

परिसर / ऋतुराज

जंगली फूलों ने लॉन के फूलों से पूछा, बताओ क्या दुःख है क्यों सूखे जा रहे हो दिन प्रतिदिन मरे जा रहे हो!! पीले, लाल, जामुनी, सफेद, नीले पचंरगे फूल बड़ी शान से बिना पानी सड़क के किनारे सूखे में खिल रहे थे हर आते-जाते से बतिया रहे थे डरते नहीं थे सर्र से निकलते… Continue reading परिसर / ऋतुराज

नागार्जुन सराय / ऋतुराज

महानता के आश्रयस्थल यदि होते हों तो इसी तरह विनम्र और खामोश रहकर प्रतिमाएँ अपना स्नेह प्रकट करती रहेंगी देखो न, यह पूँछ-उठौनी नन्हीं चिड़िया किस बेफिक्री से बैठी है नागार्जुन के सिर पर अरी, तू जानती है इन्हें? कब तेरा इनसे परिचय हुआ? बाबा तो हैं पर क्या तेरी पूँछ को पता है स्पर्श… Continue reading नागार्जुन सराय / ऋतुराज

जब हम नहीं रहेंगे / ऋतुराज

सड़क का कर्ज था शिरीषों पर निर्जन पगडंडी के बजाए साफ-सुथरा रास्ता सब के लिए और लो, जो तुम बीच में अड़े हो अपना सर्वस्व दे दो दूसरों के लिए इससे पहले कि धड़ अलग होंगे फूटने दो फलियाँ फैलने दो बीज कि चारों तरफ शिरीष-संतति रहे भले ही हम न हों न हो हमारा… Continue reading जब हम नहीं रहेंगे / ऋतुराज

छात्रावास में कविता-पाठ / ऋतुराज

कोई पच्चीस युवा थे वहाँ सीटी बजी और सबके सब एकत्रित हो गए कौन कहता है कि वे कुछ भी सुनना-समझना नहीं चाहते वे चाहते हैं दुरुस्त करना समय की पीछे चलती घड़ी को धक्का देना चाहते हैं लिप्साओं के पहाड़ पर चढ़े सत्तासीनों को नीचे कहाँ हुई हिंसा? किसने विद्रोह किया झूठ से? भ्रम… Continue reading छात्रावास में कविता-पाठ / ऋतुराज

कभी इतनी धनवान मत बनना / ऋतुराज

कभी इतनी धनवान मत बनना कि लूट ली जाओ सस्ते स्कर्ट की प्रकट भव्यता के कारण हांग्जो की गुड़िया के पीछे वह आया होगा चुपचाप बाईं जेब से केवल दो अंगुलियों की कलाकारी से बटुआ पार कर लिया होगा सुंदरता के बारे में उसका ज्ञान मात्र वित्तीय था एक लड़की का स्पर्श क्या होता है… Continue reading कभी इतनी धनवान मत बनना / ऋतुराज

किशोरी अमोनकर / ऋतुराज

न जाने किस बात पर हँस रहे थे लोग प्रेक्षागृह खचाखच भरा था जनसंख्या-बहुल देश में यह कोई अनहोनी घटना नहीं थी प्रतीक्षा थी विलंबित आलाप की तरह कब शुरू होगा स्थायी और कब अंतरा कब भूप की सवारी निकालेंगी किशोरी जी शुद्ध गंधार समय की पीठ चीरकर अंतरिक्ष में विलीन हो जाएगा फिर लौटेगा… Continue reading किशोरी अमोनकर / ऋतुराज