ता भै थैं मन लागौ राम तोही, करौ कृपा जिनि बिसरौ मोहीं॥टैक॥ जननी जठर सह्या दुख भारी, सो संक्या नहीं गई हमारी॥ दिन दिन तन छीजै जरा जनावै, केस गहे काल बिरदंग बजावै॥ कहै कबीर करुणामय आगैं, तुम्हारी क्रिपा बिना यहु बिपति न भागै॥223॥ कब देखूँ मेरे राम सनेही, जा बिन दुख पावै मेरी देही॥टेक॥… Continue reading राग आसावरी / पृष्ठ – ३ / पद / कबीर
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राग आसावरी / पृष्ठ – २ / पद / कबीर
धरी मेरे मनवाँ तोहि धरि टाँगौं, तै तौ कीयौ मेरे खसम सूँ षाँगी॥टेक॥ प्रेम की जेवरिया तेरे गलि बाँधूँ, तहाँ लै जाँउँ जहाँ मेरौ माधौ। काया नगरीं पैसि किया मैं बासा, हरि रस छाड़ि बिषै रसि माता॥ कहै कबीर तन मन का ओरा भाव भकति हरिसूँ गठजोरा॥213॥ परब्रह्म देख्या हो तत बाड़ी फूली, फल लागा… Continue reading राग आसावरी / पृष्ठ – २ / पद / कबीर
राग आसावरी / पृष्ठ – १ / पद / कबीर
ऐसा रे अवधू की वाणी, ऊपरि कूवटा तलि भरि पाँणीं॥टेक॥ जब लग गगन जोति नहीं पलटै, अबिनासा सुँ चित नहीं विहुटै। जब लग भँवर गुफा नहीं जानैं, तौ मेरा मन कैसै मानैं॥ जब लग त्रिकुटी संधि न जानैं, ससिहर कै घरि सूर न आनैं। जब लग नाभि कवल नहीं सोधै, तौ हीरै हीरा कैसै बेधैं॥… Continue reading राग आसावरी / पृष्ठ – १ / पद / कबीर
राग रामकली / पृष्ठ – ५ / पद / कबीर
बाजैं जंत्रा बजावै गुँनी, राम नाँम बिन भूली दुनीं॥टेक॥ रजगुन सतगुन तमगुन तीन, पंच तत से साजया बींन॥ तीनि लोक पूरा पेखनाँ, नाँच नचावै एकै जनाँ। कहै कबीर संसा करि दूरि, त्रिभवननाथ रह्या भरपूरि॥194॥ जंत्री जंत्रा अनूपन बाजै, ताकौ सबद गगन मैं गाजै॥टेक॥ सुर की नालि सुरति का तूँबा, सतगुर साज बनाया। सुर नर गण… Continue reading राग रामकली / पृष्ठ – ५ / पद / कबीर
राग रामकली / पृष्ठ – ४ / पद / कबीर
तेरा जन एक आध है कोई। काम क्रोध अरु लोभ बिंबर्जित, हरिपद चीन्हैं सोई॥टेक॥ राजस ताँमस सातिग तीन्यूँ, ये सब मेरी माया। चौथे पद कौं जे जन चीन्हैं, तिनहिं परम पद पाया॥ असतुति निंद्या आसा छाँड़ै, तजै माँन अभिमानाँ। लोहा कंचन समि करि देखै, ते मूरति भगवानाँ॥ च्यंतै तौ माधौ च्यंतामणि, हरिपद रमैं उदासा। त्रिस्ना… Continue reading राग रामकली / पृष्ठ – ४ / पद / कबीर
राग रामकली / पृष्ठ – ३ / पद / कबीर
अवधू अगनि जरै कै काठ। पूछौ पंडित जोग संन्यासी, सतगुर चीन्है बाट॥टेक॥ अगनि पवन मैं पवन कबन मैं, सबद गगन के पवाँन। निराकार प्रभु आदि निरंजन, कत रवंते भवनाँ॥ उतपति जाति कवन अँधियारा, धन बादल का बरिषा। प्रगट्यो बीच धरनि अति अधिकै, पारब्रह्म नहीं देखा॥ मरनाँ मरै न मरि सकै, मरनाँ दूरि न नेरा। द्वादश… Continue reading राग रामकली / पृष्ठ – ३ / पद / कबीर
राग रामकली / पृष्ठ – २ / पद / कबीर
राम राइ अबिगत बिगति न जानै, कहि किम तोहिं रूप बषानै॥टेक॥ प्रथमे गगन कि पुहमि प्रथमे प्रभू पवन कि पाँणीं। प्रथमे चंद कि सूर प्रथमे प्रभू, प्रथमे कौन बिनाँणीं॥ प्रथमे प्राँण कि प्यंड प्रथमे प्रभू, प्रथमे रकत कि रेत। प्रथमे पुरिष की नारि प्रथमे प्रभू, प्रथमे बीज की खेत॥ प्रथमे दिवस कि रैणि प्रथमे प्रभू,… Continue reading राग रामकली / पृष्ठ – २ / पद / कबीर
राग रामकली / पृष्ठ – १ / पद / कबीर
जगत गुर अनहद कींगरी बाजे, तहाँ दीरघ नाद ल्यौ लागे॥टेक॥ त्री अस्यान अंतर मृगछाला, गगन मंडल सींगी बाजे॥ तहुँआँ एक दुकाँन रच्यो हैं, निराकार ब्रत साजे॥ गगन ही माठी सींगी करि चुंगी, कनक कलस एक पावा। तहुँवा चबे अमृत रस नीझर, रस ही मैं रस चुवावा॥ अब तौ एक अनूपम बात भई, पवन पियाला साजा।… Continue reading राग रामकली / पृष्ठ – १ / पद / कबीर
राग गौड़ी / पृष्ठ – १५ / पद / कबीर
कहौ भइया अंबर काँसूँ लागा, कोई जाँणँगा जाँननहारा॥टेक॥ अंबरि दीसे केता तारा कौन चतुर ऐसा चितवनहारा॥ जे तुम्ह देखौ सो यहु नाँही, यहु पद अगम अगोचर माँही॥ तीनि हाथ एक अरधाई, ऐसा अंबर चीन्हौ रे भाई॥ कहै कबीर जे अंबर जाने, ताही सूँ मेरा मन माँनै॥141॥ तन खोजौ नर करौ बड़ाई, जुगति बिना भगति किनि… Continue reading राग गौड़ी / पृष्ठ – १५ / पद / कबीर
राग गौड़ी / पृष्ठ – १४ / पद / कबीर
राम न जपहु कहा भयौ अंधा राम बिना जँम मैले फंधा॥टेक॥ सुत दारा का किया पसारा, अंत की बेर भये बटपारा॥ माया ऊपरि माया माड़ी, साथ न चले षोषरी हाँड़ा॥ जपौ राम ज्यूँ अंति उबारै, ठाढ़ी बाँह कबीर पुकारै॥128॥ डगमग छाड़ि दै मन बौरा। अब तौ जरें बरें बनि आवै, लीन्हों हाथ सिंधौरा॥टेक॥ होइ निसंक… Continue reading राग गौड़ी / पृष्ठ – १४ / पद / कबीर