जबकि पूरी दुनिया की जवान लड़कियों की आँखों में एक मासूम बच्चे की ह्त्या हो चुकी थी मैंने देखा तुम्हारे मन तुम्हारे शरीर और तुम्हारी आत्मा में किलकारियाँ लेता एक बच्चा… इस ग्लोबल युग की यह सबसे बड़ी परिघटना है जगह मिलनी चाहिए इसे गिनीज़ बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में सबसे बड़े जीवित करिश्मे की… Continue reading बचाया जाना चाहिए तुम्हें / घनश्याम कुमार ‘देवांश’
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याद / घनश्याम कुमार ‘देवांश’
कभी कभी बहुत याद आती है इतनी ज़्यादा याद आती है कि मन करता है कि आँख में खंज़र कुरेद-कुरेद कर इस कदर रोऊँ की यह पूरी दुनिया बाढ़ की नदी में आए झोंपड़े की तरह बह जाए लेकिन फिर चौकड़ी मारकर बैठता हूँ और पलटता हूँ पुरानी डायरियाँ आख़िरकार हर “न” से परेशान हो… Continue reading याद / घनश्याम कुमार ‘देवांश’
इन पहाड़ों पर….-3 / घनश्याम कुमार ‘देवांश’
तवांग के ख़ूबसूरत पहाड़ों से उपजते हुए… वो आसमान जिसने भरे हुए महानगर में दौड़ाया था मुझे जो अपने महत्त्वाकाँक्षी दरातों से रोज़ मेरी आत्मा में एक खाई चीरता था और जो जब शुरू होता था तो ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेता था यहाँ आकर देखा मैंने वह पहाड़ों के कन्धों पर एक… Continue reading इन पहाड़ों पर….-3 / घनश्याम कुमार ‘देवांश’
इन पहाड़ों पर….-2 / घनश्याम कुमार ‘देवांश’
तवांग के ख़ूबसूरत पहाड़ों से उपजते हुए… आगे – पीछे ऊपर – नीचे और तो और बीच में भी पहाड़ ही है जिसपर मैं इस वक़्त बैठा हुआ हूँ सोते – जागते बाहर – भीतर पहाड़ ही पहाड़ नज़र आते हैं बड़े – बड़े बीहड़ पहाड़… पहाड़, जिनसे मैंने ज़िन्दगी भर प्यार किया गड्ड-मड्ड हो… Continue reading इन पहाड़ों पर….-2 / घनश्याम कुमार ‘देवांश’
इन पहाड़ों पर….-1 / घनश्याम कुमार ‘देवांश’
तवांग के ख़ूबसूरत पहाड़ों से उपजते हुए… सामने पहाड़ दिनभर बादलों के तकिए पर सर रखे ऊँघते हैं और सूरज रखता है उनके माथे पर नरम-नरम गुलाबी होंठ तेज़ हवाओं में बादलों के रोएँ उठते हैं धुएँ की तरह… फिर भी कोई बादल तो छूट ही जाता है किसी दिन तनहा बिजली की तार पर… Continue reading इन पहाड़ों पर….-1 / घनश्याम कुमार ‘देवांश’
संगीत सुनते युद्धबंदी / गंगा प्रसाद विमल
भूल चुके वे कैसे किया जाता है जीवन वे जानते हैं कैसे मरते हैं. और अब वे छाया की तरह रास्ते पर चलते हैं आदेश से रुकते हैं हुक्म से ही और हर तरह की विवसता में ही बस हँसते हैं. परन्तु क्रूर हैं क्रूर हैं लोग. लापरवाही से खोलते हैं गवाक्ष और उड़ेल देता… Continue reading संगीत सुनते युद्धबंदी / गंगा प्रसाद विमल
सम्मान की खातिर / गंगा प्रसाद विमल
ओ मेरे प्रपिता दूरस्थ प्रपिता सौ साल से भी उपर होंगे उस उत्सव दिन की शाम को जब तुमने दिया था मुझे नाम. यही तो है बूढ़े चरवाहे की कथा तुमने प्यार किया सुन्दरी को पर उसका बाप था थुलथुल महाजन और दे दी लड़की एक तुर्क को पैसों के लिए लेकिन उत्सव दिन ही… Continue reading सम्मान की खातिर / गंगा प्रसाद विमल
शक्ति / गंगा प्रसाद विमल
जन्मी है शक्ति गरीब की उपजाऊ धरती से बेबसी में ही बढ़ी है हमारी महान सामर्थ्य दो मुझे दो शक्ति जिसे हृदय ने रोपा है जिसे रोप कर काटा है आदमी ने और मापा है फांसी के फंदों से.
एक छोटा गीत / गंगा प्रसाद विमल
अन्तहीन घासीले मैदानों पार मेरे और तुम्हारे बीच बहती है दर्द की वोल्गा और वहाँ हैं ऊँचे किनारे. वहाँ है एक ऊँचाई वहाँ एक भयंकर शत्रु…. वहाँ वहाँ से वापसी का कोई रास्ता नहीं गोलियों से गूँथ दिया था तुम्हे हाँ– बख्तरबंद गाड़ियों के चिन्ह हैं कुचला था तुम्हें आग बरसाने वाले गोले से भून… Continue reading एक छोटा गीत / गंगा प्रसाद विमल
स्व चित्र / गंगा प्रसाद विमल
देर गये पेरिस के कला क्षेत्र मेरे टूटे अंधेरे. अभी पीड़ित करते हैं. अभी बरसता है और दुबारा कहवा घर में घुसता है कलाकार उलझती हैं आँखें उस सुंदर चिन्ह पर चेहरे पर टंकी है जबरन एक मुसकराहट. अब मैं खुद को एक तसवीर की संज्ञा दूँगा और अदा करूँगा खुद दो गिलास मदिरा का… Continue reading स्व चित्र / गंगा प्रसाद विमल