संगीत सुनते युद्धबंदी / गंगा प्रसाद विमल

भूल चुके वे कैसे किया जाता है जीवन वे जानते हैं कैसे मरते हैं. और अब वे छाया की तरह रास्ते पर चलते हैं आदेश से रुकते हैं हुक्म से ही और हर तरह की विवसता में ही बस हँसते हैं. परन्तु क्रूर हैं क्रूर हैं लोग. लापरवाही से खोलते हैं गवाक्ष और उड़ेल देता… Continue reading संगीत सुनते युद्धबंदी / गंगा प्रसाद विमल

सम्मान की खातिर / गंगा प्रसाद विमल

ओ मेरे प्रपिता दूरस्थ प्रपिता सौ साल से भी उपर होंगे उस उत्सव दिन की शाम को जब तुमने दिया था मुझे नाम. यही तो है बूढ़े चरवाहे की कथा तुमने प्यार किया सुन्दरी को पर उसका बाप था थुलथुल महाजन और दे दी लड़की एक तुर्क को पैसों के लिए लेकिन उत्सव दिन ही… Continue reading सम्मान की खातिर / गंगा प्रसाद विमल

शक्ति / गंगा प्रसाद विमल

जन्मी है शक्ति गरीब की उपजाऊ धरती से बेबसी में ही बढ़ी है हमारी महान सामर्थ्य दो मुझे दो शक्ति जिसे हृदय ने रोपा है जिसे रोप कर काटा है आदमी ने और मापा है फांसी के फंदों से.

एक छोटा गीत / गंगा प्रसाद विमल

अन्तहीन घासीले मैदानों पार मेरे और तुम्हारे बीच बहती है दर्द की वोल्गा और वहाँ हैं ऊँचे किनारे. वहाँ है एक ऊँचाई वहाँ एक भयंकर शत्रु…. वहाँ वहाँ से वापसी का कोई रास्ता नहीं गोलियों से गूँथ दिया था तुम्हे हाँ– बख्तरबंद गाड़ियों के चिन्ह हैं कुचला था तुम्हें आग बरसाने वाले गोले से भून… Continue reading एक छोटा गीत / गंगा प्रसाद विमल

स्व चित्र / गंगा प्रसाद विमल

देर गये पेरिस के कला क्षेत्र मेरे टूटे अंधेरे. अभी पीड़ित करते हैं. अभी बरसता है और दुबारा कहवा घर में घुसता है कलाकार उलझती हैं आँखें उस सुंदर चिन्ह पर चेहरे पर टंकी है जबरन एक मुसकराहट. अब मैं खुद को एक तसवीर की संज्ञा दूँगा और अदा करूँगा खुद दो गिलास मदिरा का… Continue reading स्व चित्र / गंगा प्रसाद विमल

रूपांतर / गंगा प्रसाद विमल

रूपांतर इतिहास गाथाएं झूठ हैं सब सच है एक पेड जब तक वह फल देता है तब तक सच है जब यह दे नहीं सकता न पत्ते न छाया तब खाल सिकुडने लगती है उसकी और फिर एक दिन खत्म हो जाता है वह इतिहास बन जाता है और गाथा और सच से झूठ में… Continue reading रूपांतर / गंगा प्रसाद विमल

कौन कहाँ रहता है / गंगा प्रसाद विमल

कौन कहां रहता है घर मुझमें रहता है या मैं घर में कौन कहां रहता है घर में घुसता हूँ तो सिकुड जाता है घर एक कुर्सी या पलंग के एक कोने में घर मेरी दृष्टि में स्मृति में तब कहीं नहीं रहता वह रहता है मुझमें मेरे अहंकार में फूलता जाता है घर जब… Continue reading कौन कहाँ रहता है / गंगा प्रसाद विमल

शेष / गंगा प्रसाद विमल

शेष कई बार लगता है मैं ही रह गया हूँ अबीता पृष्ठ बाकी पृष्ठों पर जम गई है धूल। धूल के बिखरे कणों में रह गए हैं नाम कई बार लगता है एक मैं ही रह गया हूँ अपरिचित नाम। इतने परिचय हैं और इतने सम्बंध इतनी आंखें हैं और इतना फैलाव पर बार-बार लगता… Continue reading शेष / गंगा प्रसाद विमल