कबीर गर्ब न कीजिये, इस जीवन की आस | टेसू फूला दिवस दस, खंखर भया पलास || कबीर जी कहते हैं कि इस जवानी कि आशा में पड़कर मद न करो | दस दिनों में फूलो से पलाश लद जाता है, फिर फूल झड़ जाने पर वह उखड़ जाता है, वैसे ही जवानी को समझो… Continue reading व्यवहार की महिमा / कबीर
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भक्ति की महिमा / कबीर
भक्ति बीज पलटै नहीं, जो जुग जाय अनन्त | ऊँच नीच घर अवतरै, होय सन्त का सन्त || की हुई भक्ति के बीज निष्फल नहीं होते चाहे अनंतो युग बीत जाये | भक्तिमान जीव सन्त का सन्त ही रहता है चाहे वह ऊँच – नीच माने गये किसी भी वर्ण – जाती में जन्म ले… Continue reading भक्ति की महिमा / कबीर
सुख-दुःख की महिमा / कबीर
सुख – दुःख सिर ऊपर सहै, कबहु न छाडै संग | रंग न लागै और का, व्यापै सतगुरु रंग || सभी सुख – दुःख अपने सिर ऊपर सह ले, सतगुरु – सन्तो की संगर कभी न छोड़े | किसी ओर विषये या कुसंगति में मन न लगने दे, सतगुरु के चरणों में या उनके ज्ञान… Continue reading सुख-दुःख की महिमा / कबीर
सेवक की महिमा / कबीर
सवेक – स्वामी एक मत, मत में मत मिली जाय | चतुराई रीझै नहीं, रीझै मन के भाय || सवेक और स्वामी की पारस्परिक मत मिलकर एक सिद्धांत होना चहिये | चालाकी करने से सच्चे स्वामी नहीं प्रसन्न होते, बल्कि उनके प्रसन्न होने का कारण हार्दिक भक्ति – भाव होता है | सतगुरु शब्द उलंघ… Continue reading सेवक की महिमा / कबीर
संगति की महिमा / कबीर
कबीर संगत साधु की, नित प्रति कीजै जाय | दुरमति दूर बहावासी, देशी सुमति बताय || गुरु कबीर जी कहते हैं कि प्रतिदिन जाकर संतों की संगत करो | इससे तुम्हारी दुबुद्धि दूर हो जायेगी और सन्त सुबुद्धि बतला देंगे | कबीर संगत साधु की, जौ की भूसी खाय | खीर खांड़ भोजन मिलै, साकत… Continue reading संगति की महिमा / कबीर
सद्आचरण की महिमा / कबीर
माँगन गै सो मर रहै, मरै जु माँगन जाहिं | तिनते पहिले वे मरे, होत करत हैं नहिं || जो किसी के यहाँ मांगने गया, जानो वह मर गया | उससे पहले वो मरगया जिसने होते हुए मना कर दिया | अजहूँ तेरा सब मिटै, जो मानै गुरु सीख | जब लग तू घर में… Continue reading सद्आचरण की महिमा / कबीर
आचरण की महिमा / कबीर
चाल बकुल की चलत है, बहुरि कहावै हंस | ते मुक्ता कैसे चुगे, पड़े काल के फंस || जो बगुले के आचरण में चलकर, पुनः हंस कहलाते हैं वे ज्ञान – मोती कैसे चुगेगे ? वे तो कल्पना काल में पड़े हैं | बाना पहिरे सिंह का, चलै भेड़ की चाल | बोली बोले सियार… Continue reading आचरण की महिमा / कबीर
साधु-महिमा / कबीर
कबीर सोई दिन भला, जा दिन साधु मिलाय | अंक भरे भरि भेरिये, पाप शरीर जाय || वो दिन बहुत अच्छा है जिस दिन सन्त मिले | सन्तो से दिल खोलकर मिलो , मन के दोष दूर होंगे | दरशन कीजै साधु का, दिन में कइ कइ बार | आसोजा का भेह ज्यों, बहुत करे… Continue reading साधु-महिमा / कबीर
गुरु-महिमा / कबीर
गुरु सो ज्ञान जु लीजिये, सीस दीजये दान। बहुतक भोंदू बहि गये, सखि जीव अभिमान॥१॥ व्याख्या: अपने सिर की भेंट देकर गुरु से ज्ञान प्राप्त करो | परन्तु यह सीख न मानकर और तन, धनादि का अभिमान धारण कर कितने ही मूर्ख संसार से बह गये, गुरुपद – पोत में न लगे। गुरु की आज्ञा… Continue reading गुरु-महिमा / कबीर
परिशिष्ट-21 / कबीर
सनक सनंद महेस समाना। सेष नाग तेरी मर्म न जाना॥ संत संगति राम रिदै बसाई। हनुमान सरि गरुड़ समाना। सुरपति नरपति नहिं गुन जाना॥ चारि बेद अरु सिमृति पुराना। कमलापति कमल नहिं जाना॥ कह कबीर सो धरमैं नाहीं। पग लगि राम रहै सरनाहीं॥201॥ सब कोई चलन कहत है ऊँहा। ना जानी बैकुठ है कहाँ॥ आप… Continue reading परिशिष्ट-21 / कबीर