ऊंकार आदि है मूला, राजा परजा एकहिं सूला। हम तुम्ह मां हैं एकै लोहू, एकै प्रान जीवन है मोहू॥ एकही बास रहै दस मासा, सूतग पातग एकै आसा॥ एकहीं जननीं जान्यां संसारा, कौन ग्यान थैं भये निनारा॥ ग्यांन न पायो बावरे, धरी अविद्या मैड। सतगुर मिल्या न मुक्ति फल ताथैं खाई बैड॥ बालक ह्नै भग… Continue reading चौपदी / रमैणी / कबीर
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बारहपदी / रमैणी / कबीर
पहली मन में सुमिरौ सोई, ता सम तुलि अवर नहीं कोई॥ कोई न पूजै बाँसूँ प्रांनां, आदि अंति वो किनहूँ न जाँनाँ॥ रूप सरूप न आवै बोला, हरू गरू कछू जाइ न तोला॥ भूख न त्रिषां धूप नहीं छांही, सुख दुख रहित रहै सब मांही॥ अविगत अपरंपार ब्रह्म, ग्याँन रूप सब ठाँम॥॥ बहु बिचारि करि… Continue reading बारहपदी / रमैणी / कबीर
अष्टपदी / रमैणी / कबीर
केऊ केऊ तीरथ ब्रत लपटानां, केऊ केऊ केवल राम निज जाना॥ अजरा अमर एक अस्थाना, ताका मरम काहू बिरलै जानां॥ अबरन जोति सकल उजियारा, द्रिष्टि समांन दास निस्तारा॥ जो नहीं उपज्या धरनि सरीरा, ताकै पथि न सींच्या नीरा॥ जा नहीं लागे सूरजि के बांनां, सो मोहि आंनि देहु को दाना॥ जब नहीं होते पवन नहीं… Continue reading अष्टपदी / रमैणी / कबीर
दुपदी / रमैणी / कबीर
भरा दयाल बिषहर जरि जागा, गहगहान प्रेम बहु लगा॥ भया अनंद जीव भये उल्हासा, मिले राम मनि पूगी आसा॥ मास असाढ़ रबि धरनि जरावै, जरत जरत जल आइ बुझावै॥ रूति सुभाइ जिमीं सब जागी, अंमृत धार होइ झर लागी॥ जिमीं मांहि उठी हरियाई, बिरहनि पीव मिले जन जाई॥ मनिकां मनि के भये उछाहा, कारनि कौन… Continue reading दुपदी / रमैणी / कबीर
बड़ी अष्टपदी / रमैणी / कबीर
एक बिनाँनी रच्या बिनांन, सब अयांन जो आपै जांन॥ सत रज तम थें कीन्हीं माया, चारि खानि बिस्तार उपाया॥ पंच तत ले कीन्ह बंधानं, पाप पुंनि मांन अभिमानं॥ अहंकार कीन्हें माया मोहू, संपति बिपति दीन्हीं सब काहू॥ भले रे पोच अकुल कुलवंता, गुणी निरगुणी धन नीधनवंता॥ भूख पियास अनहित हित कीन्हो, हेत मोर तोर करि… Continue reading बड़ी अष्टपदी / रमैणी / कबीर
सतपदी / रमैणी / कबीर
कहन सुनन कौ जिहि जग कीन्हा, जग भुलाँन सो किनहुँ न चीन्हा॥ सत रज तम थें कीन्हीं माया, आपण माझै आप छिपाया॥ तुरक सरीअत जनिये, हिंदू बेद पुरान॥ मन समझन कै कारनै, कछु एक पढ़िये ज्ञान॥ जहाँ बोल तहाँ आखिर आवा, जहाँ अबोल तहाँ मन न लगावा॥ बोल अबोल मंझि है सोई, जे कुछि है… Continue reading सतपदी / रमैणी / कबीर
राग सूहौ / रमैणी / कबीर
तू सकल गहगरा, सफ सफा दिलदार दीदार॥ तेरी कुदरति किनहूँ न जानी, पीर मुरीद काजी मुसलमानी॥ देवौ देव सुर नर गण गंध्रप, ब्रह्मा देव महेसुर॥ तेरी कुदरति तिनहूँ न जांनी॥टेक॥ काजी सो जो काया बिचारै, तेल दीप मैं बाती जारै॥ तेल दीप मैं बाती रहे, जोति चीन्हि जे काजी कहै॥ मुलनां बंग देइ सुर जाँनी,… Continue reading राग सूहौ / रमैणी / कबीर
राग धनाश्री / पद / कबीर
जपि जपि रे जीयरा गोब्यंदो, हित चित परमांनंदौ रे। बिरही जन कौ बाल हौ, सब सुख आनंदकंदौ रे॥टेक॥ धन धन झीखत धन गयौ, सो धन मिल्यौ न आये रे॥ ज्यूँ बन फूली मालती, जन्म अबिरथा जाये रे॥ प्रांणी प्रीति न कीजिये, इहि झूठे संसारी रे॥ धूंवां केरा धौलहर जात न लागै बारी रे॥ माटी केरा… Continue reading राग धनाश्री / पद / कबीर
राग मलार / पद / कबीर
जतन बिन मृगनि खेत उजारे, टारे टरत नहीं निस बासुरि, बिडरत नहीं बिडारे॥टेक॥ अपने अपने रस के लोभी, करतब न्यारे न्यारे। अति अभिमान बदत नहीं काहू, बहुत लोग पचि हारे॥ बुधि मेरी फिरषी गुर मेरौ बिझुका, आखिर दोइ रखवारे॥ कहै कबीर अब खान न दैहूँ, बरियां भली सँभारे॥396॥ हरि गुन सुमरि रे नर प्राणी। जतन… Continue reading राग मलार / पद / कबीर
राग सारंग / पद / कबीर
यहु ठग ठगत सकल जग डोलै, गवन करै तब मुषह न बोलै॥ तूँ मेरो पुरिषा हौं तेरी नारी, तुम्ह चलतैं पाथर थैं भारी। बालपनाँ के मीत हमारे, हमहिं लाडि कत चले हो निनारे॥ हम सूँ प्रीति न करि री बौरी, तुमसे केते लागे ढौरी॥ हम काहू संगि गए न आये, तुम्ह से गढ़ हम बहुत… Continue reading राग सारंग / पद / कबीर