राम बिनु तन को ताप न जाई । जल में अगन रही अधिकाई ॥ राम बिनु तन को ताप न जाई ॥ तुम जलनिधि मैं जलकर मीना । जल में रहहि जलहि बिनु जीना ॥ राम बिनु तन को ताप न जाई ॥ तुम पिंजरा मैं सुवना तोरा । दरसन देहु भाग बड़ मोरा ॥… Continue reading राम बिनु तन को ताप न जाई / कबीर
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नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार / कबीर
नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार ॥ साहिब तुम मत भूलियो लाख लो भूलग जाये । हम से तुमरे और हैं तुम सा हमरा नाहिं । अंतरयामी एक तुम आतम के आधार । जो तुम छोड़ो हाथ प्रभुजी कौन उतारे पार ॥ गुरु बिन कैसे लागे पार ॥ मैं अपराधी जन्म को मन… Continue reading नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार / कबीर
बीत गये दिन भजन बिना रे / कबीर
बीत गये दिन भजन बिना रे । भजन बिना रे, भजन बिना रे ॥ बाल अवस्था खेल गवांयो । जब यौवन तब मान घना रे ॥ लाहे कारण मूल गवाँयो । अजहुं न गयी मन की तृष्णा रे ॥ कहत कबीर सुनो भई साधो । पार उतर गये संत जना रे ॥
बहुरि नहिं आवना या देस / कबीर
बहुरि नहिं आवना या देस ॥ जो जो गए बहुरि नहि आए, पठवत नाहिं सॅंस ॥ १॥ सुर नर मुनि अरु पीर औलिया, देवी देव गनेस ॥ २॥ धरि धरि जनम सबै भरमे हैं ब्रह्मा विष्णु महेस ॥ ३॥ जोगी जङ्गम औ संन्यासी, दीगंबर दरवेस ॥ ४॥ चुंडित, मुंडित पंडित लोई, सरग रसातल सेस ॥… Continue reading बहुरि नहिं आवना या देस / कबीर
तेरा मेरा मनुवां / कबीर
तेरा मेरा मनुवां कैसे एक होइ रे । मै कहता हौं आँखन देखी, तू कहता कागद की लेखी । मै कहता सुरझावन हारी, तू राख्यो अरुझाई रे ॥ मै कहता तू जागत रहियो, तू जाता है सोई रे । मै कहता निरमोही रहियो, तू जाता है मोहि रे ॥ जुगन-जुगन समझावत हारा, कहा न मानत… Continue reading तेरा मेरा मनुवां / कबीर
मोको कहां / कबीर
मोको कहां ढूढें तू बंदे मैं तो तेरे पास मे । ना मैं बकरी ना मैं भेडी ना मैं छुरी गंडास मे । नही खाल में नही पूंछ में ना हड्डी ना मांस मे ॥ ना मै देवल ना मै मसजिद ना काबे कैलाश मे । ना तो कोनी क्रिया-कर्म मे नही जोग-बैराग मे ॥… Continue reading मोको कहां / कबीर
नीति के दोहे / कबीर
प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय। राजा परजा जेहि रूचै, सीस देइ ले जाय।। जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं। प्रेम गली अति साँकरी, तामें दो न समाहिं।। जिन ढूँढा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ। मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।। बुरा जो देखन मैं चला, बुरा… Continue reading नीति के दोहे / कबीर
कबीर के पद / कबीर
1. अरे दिल, प्रेम नगर का अंत न पाया, ज्यों आया त्यों जावैगा।। सुन मेरे साजन सुन मेरे मीता, या जीवन में क्या क्या बीता।। सिर पाहन का बोझा लीता, आगे कौन छुड़ावैगा।। परली पार मेरा मीता खडि़या, उस मिलने का ध्यान न धरिया।। टूटी नाव, उपर जो बैठा, गाफिल गोता खावैगा।। दास कबीर कहैं… Continue reading कबीर के पद / कबीर
हमन है इश्क मस्ताना / कबीर
हमन है इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या ? रहें आजाद या जग से, हमन दुनिया से यारी क्या ? जो बिछुड़े हैं पियारे से, भटकते दर-ब-दर फिरते, हमारा यार है हम में हमन को इंतजारी क्या ? खलक सब नाम अनपे को, बहुत कर सिर पटकता है, हमन गुरनाम साँचा है, हमन दुनिया से… Continue reading हमन है इश्क मस्ताना / कबीर
कबीर की साखियाँ / कबीर
कस्तूरी कुँडल बसै, मृग ढ़ुढ़े बब माहिँ. ऎसे घटि घटि राम हैं, दुनिया देखे नाहिँ.. प्रेम ना बाड़ी उपजे, प्रेम ना हाट बिकाय. राजा प्रजा जेहि रुचे, सीस देई लै जाय .. माला फेरत जुग गाया, मिटा ना मन का फेर. कर का मन का छाड़ि, के मन का मनका फेर.. माया मुई न मन… Continue reading कबीर की साखियाँ / कबीर