गोब्यंदा गुँण गाईये रे, ताथैं भाई पाईये परम निधान॥टेक॥ ऊंकारे जग ऊपजै, बिकारे जग जाइ। अनहद बेन बजाइ करि रह्यों गगन मठ छाइ॥ झूठै जग डहकाइया रे क्या जीवण की आस। राम रसाँइण जिनि पीया, तिनकैं बहुरि न लागी रे पियास॥ अरघ षिन जीवन भला, भगवत भगति सहेत। कोटि कलप जीवन ब्रिथा, नाँहिन हरि सूँ… Continue reading राग गौड़ी / पृष्ठ – १३ / पद / कबीर
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राग गौड़ी / पृष्ठ – १२ / पद / कबीर
हरि जननी मैं बालिक तेरा, काहे न औगुण बकसहु मेरा॥टेक॥ सुत अपराध करै दिन केते, जननी कै चित रहै न तेते॥ कर गहि केस करे जौ घाता, तऊ न हेत उतारै माता॥ कहैं कबीर एक बुधि बिचारी, बालक दुखी दुखी महतारी॥111॥ गोब्यदें तुम्ह थैं डरपौं भारी, सरणाई आयौ क्यूँ गहिये, यहु कौन बात तुम्हारी॥टेक॥ धूप… Continue reading राग गौड़ी / पृष्ठ – १२ / पद / कबीर
राग गौड़ी / पृष्ठ – ११ / पद / कबीर
माया का रस षाण न पावा, तह लग जम बिलवा ह्नै धावा॥टेक॥ अनेक जतन करि गाड़ि दुराई, काहू साँची काहू खाई॥ तिल तिल करि यहु माया जोरी, चलति बेर तिणाँ ज्यूँ तासी॥ कहै कबीर हूँ ताँका दास, माया माँहैं रहैं उदास॥101॥ मेरी मेरी दुनिया करते, मोह मछर तन धरते, आगै पीर मुकदम होते, वै भी… Continue reading राग गौड़ी / पृष्ठ – ११ / पद / कबीर
राग गौड़ी / पृष्ठ – १० / पद / कबीर
बिनसि जाइ कागद की गुड़िया, जब लग पवन तबै उग उड़िया॥टेक॥ गुड़िया कौ सबद अनाहद बोलै, खसम लियै कर डोरी डोलै॥ पवन थक्यो गुड़िया ठहरानी, सीस धनै धुनि रोवै प्राँनी। कहै कबीर भजि सारँगपानी, नाहीं तर ह्नैहै खैंचा तानी॥91॥ मन रे तन कागद का पुतला। लागै बूँद बिनसि जाइ छिन में, गरब कर क्या इतना॥टेक॥… Continue reading राग गौड़ी / पृष्ठ – १० / पद / कबीर
राग गौड़ी / पृष्ठ – ९ / पद / कबीर
माई रे चूँन बिलूँटा खाई, वाघनि संगि भई सबहिन कै, खसम न भेद लहाई॥टेक॥ सब घर फोरि बिलूँटा खायौ, कोई न जानैं भेव। खसम निपूतौ आँगणि सूतौ, राँड न देई लेव॥ पाडोसनि पनि भई बिराँनी, माँहि हुई घर घालै। पंच सखी मिलि मंगल गाँवैं, यह दुख याकौं सालै॥ द्वै द्वै दीपक धरि धरि जोया, मंदिर… Continue reading राग गौड़ी / पृष्ठ – ९ / पद / कबीर
राग गौड़ी / पृष्ठ – ८ / पद / कबीर
कोई पीवै रे रस राम नाम का, जो पीवै सो जोगी रे। संतौ सेवा करौ राम की, और न दूजा भोगी रे॥टेक॥ यहु रस तौ सब फीका भया, ब्रह्म अगनि परजारी रे। ईश्वर गौरी पीवन लागे, राँम तनीं मतिवारी रे॥ चंद सूर दोइ भाठी कीन्ही सुषमनि चिगवा लागी रे। अंमृत कूँ पी साँचा पुरया, मेरी… Continue reading राग गौड़ी / पृष्ठ – ८ / पद / कबीर
राग गौड़ी / पृष्ठ – ७ / पद / कबीर
पढ़ि ले काजी बंग निवाजा, एक मसीति दसौं दरवाजा॥टेक॥ मन करि मका कबिला करि देही, बोलनहार जगत गुर येही॥ उहाँ न दोजग भिस्त मुकाँमाँ, इहाँ ही राँम इहाँ रहिमाँनाँ॥ बिसमल ताँमस भरम कै दूरी, पंचूँ भयि ज्यूँ होइ सबूरी॥ कहै कबीर मैं भया दीवाँनाँ, मनवाँ मुसि मुसि सहजि समानाँ॥61॥ टिप्पणी: ख-मन करि मका कबिला कर… Continue reading राग गौड़ी / पृष्ठ – ७ / पद / कबीर
राग गौड़ी / पृष्ठ – ६ / पद / कबीर
लोका जानि न भूलौ भाई। खालिक खलक खलक मैं खालिक, सब घट रहौ समाई ॥टेक॥ अला एकै नूर उपनाया, ताकी कैसी निंदा। ता नूर थै सब जग कीया, कौन भला कौन मंदा ॥ ता अला की गति नहीं जाँनी गुरि गुड़ दीया मीठा ॥ कहै कबीर मैं पूरा पाया, सब घटि साहिब दीठा ॥51॥ राँम… Continue reading राग गौड़ी / पृष्ठ – ६ / पद / कबीर
राग गौड़ी / पृष्ठ – ५ / पद / कबीर
जौ पै करता बरण बिचारै, तौ जनमत तीनि डाँड़ि किन सारै॥टेक॥ उतपति ब्यंद कहाँ थैं आया, जो धरी अरु लागी माया। नहीं को ऊँचा नहीं को नीचा, जाका प्यंड ताही का सींचा। जे तूँ बाँभन बभनी जाया, तो आँन वाँट ह्नै काहे न आया। जे तूँ तुरक तुरकनी जाया, तो भीतरि खतनाँ क्यूँ न कराया।… Continue reading राग गौड़ी / पृष्ठ – ५ / पद / कबीर
राग गौड़ी / पृष्ठ – ४ / पद / कबीर
मैं डोरै डारे जाऊँगा, तौ मैं बहुरि न भौजलि आऊँगा॥टेक॥ सूत बहुत कुछ थोरा, ताथै, लाइ ले कंथा डोरा। कंथा डोरा लागा, तथ जुरा मरण भौ भागा॥ जहाँ सूत कपास न पूनी, तहाँ बसै इक मूनी। उस मूनीं सूँ चित लाऊँगा, तो मैं बहुरि न भौजलि आऊँगा॥ मेरे डंड इक छाजा, तहाँ बसै इक राजा।… Continue reading राग गौड़ी / पृष्ठ – ४ / पद / कबीर