करम गति टारै नाहिं टरी॥ टेक॥ मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी सिधि के लगन धरि। सीता हरन मरन दसरथ को बनमें बिपति परी॥ १॥ कहँ वह फन्द कहाँ वह पारधि कहॅं वह मिरग चरी। कोटि गाय नित पुन्य करत नृग गिरगिट-जोन परि॥ २॥ पाण्डव जिनके आप सारथी तिन पर बिपति परी। कहत कबीर सुनो भै… Continue reading करम गति टारै / कबीर
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जीवन की महिमा / कबीर
जीवन में मरना भला, जो मरि जानै कोय | मरना पहिले जो मरै, अजय अमर सो होय || जीते जी ही मरना अच्छा है, यदि कोई मरना जाने तो| मरने के पहले ही जो मर लेता है, वह अजर – अमर हो जाता है| शरीर रहते रहते जिसके समस्त अहंकार समाप्त हो गए, वे वासना… Continue reading जीवन की महिमा / कबीर
सहजता की महिमा / कबीर
सहज सहज सब कोई कहै, सहज न चीन्हैं कोय | जिन सहजै विषया तजै, सहज कहावै सोय || सहज – सहज सब कहते हैं, परन्तु उसे समझते नहीं जिन्होंने सहजरूप से विषय – वासनाओं का परित्याग कर दिया है, उनकी निर्विश्ये – स्थिति ही सहज कहलाती है| जो कछु आवै सहज में सोई मीठा जान… Continue reading सहजता की महिमा / कबीर
मन की महिमा / कबीर
कबीर मन तो एक है, भावै तहाँ लगाव | भावै गुरु की भक्ति करू, भावै विषय कमाव || गुरु कबीर जी कहते हैं कि मन तो एक ही है, जहाँ अच्छा लगे वहाँ लगाओ| चाहे गुरु की भक्ति करो, चाहे विषय विकार कमाओ| कबीर मनहिं गयन्द है, अंकुश दै दै राखु | विष की बेली… Continue reading मन की महिमा / कबीर
परमारथ की महिमा / कबीर
मरूँ पर माँगू नहीं, अपने तन के काज | परमारथ के कारने, मोहिं न आवै लाज || मर जाऊँ, परन्तु अपने शरीर के स्वार्थ के लिए नहीं माँगूँगा| परन्तु परमार्थ के लिए माँगने में मुझे लज्जा नहीं लगती| सुख के संगी स्वारथी, दुःख में रहते दूर | कहैं कबीर परमारथी, दुःख – सुख सदा हजूर… Continue reading परमारथ की महिमा / कबीर
निष्काम की महिमा / कबीर
संसारी से प्रीतड़ी, सरै न एको काम | दुविधा में दोनों गये, माया मिली न राम || संसारियों से प्रेम जोड़ने से, कल्याण का एक काम भी नहीं होता| दुविधा में तुम्हारे दोनों चले जयेंगे, न माया हाथ लगेगी न स्वस्वरूप स्तिथि होगी, अतः जगत से निराश होकर अखंड वैराग्ये करो| स्वारथ का सब कोई… Continue reading निष्काम की महिमा / कबीर
सति की महिमा / कबीर
साधु सती और सूरमा, इनका मता अगाध | आशा छाड़े देह की, तिनमें अधिका साध || सन्त, सती और शूर – इनका मत अगम्य है| ये तीनों शरीर की आशा छोड़ देते हैं, इनमें सन्त जन अधिक निश्चय वाले होते होते हैं | साधु सती और सूरमा, कबहु न फेरे पीठ | तीनों निकासी बाहुरे,… Continue reading सति की महिमा / कबीर
शब्द की महिमा / कबीर
शब्द दुरिया न दुरै, कहूँ जो ढोल बजाय | जो जन होवै जौहोरी, लेहैं सीस चढ़ाय || ढोल बजाकर कहता हूँ निर्णय – वचन किसी के छिपाने (निन्दा उपहास करने) से नहीं छिपते | जो विवेकी – पारखी होगा, वह निर्णय – वचनों को शिरोधार्य कर लेगा | एक शब्द सुख खानि है, एक शब्द… Continue reading शब्द की महिमा / कबीर
उपदेश की महिमा / कबीर
काल काल तत्काल है, बुरा न करिये कोय | अन्बोवे लुनता नहीं, बोवे तुनता होय || काल का विकराल गाल तुमको तत्काल ही निगलना चाहता है, इसीलिए किसी प्रकार भी बुराई न करो | जो नहीं बोया गया है, वह काटने को नहीं मिलता, बोया ही कटा जाता है | या दुनिया में आय के,… Continue reading उपदेश की महिमा / कबीर
काल की महिमा / कबीर
कबीर टुक टुक चोंगता, पल पल गयी बिहाय | जिन जंजाले पड़ि रहा, दियरा यमामा आय || ऐ जीव ! तू क्या टुकुर टुकुर देखता है ? पल पल बीताता जाता है, जीव जंजाल में ही पड़ रहा है, इतने में मौत ने आकर कूच का नगाड़ा बजा दिया | जो उगै सो आथवै, फूले… Continue reading काल की महिमा / कबीर