होती है अगर्चे कहने से यारों पराई बात / मीर तक़ी ‘मीर’

होती है अगर्चे कहने से यारों पराई बात पर हम से तो थमी न कभू मुँह पे आई बात कहते थे उस से मिलते तो क्या-क्या न कहते लेक वो आ गया तो सामने उस के न आई बात बुलबुल के बोलने में सब अंदाज़ हैं मेरे पोशीदा क्या रही है किसु की उड़ाई बात… Continue reading होती है अगर्चे कहने से यारों पराई बात / मीर तक़ी ‘मीर’

गुल को महबूब में क़यास किया / मीर तक़ी ‘मीर’

गुल को महबूब में क़यास किया फ़र्क़ निकला बहोत जो बास किया दिल ने हम को मिसाल-ए-आईना एक आलम से रू-शिनास किया कुछ नहीं सूझता हमें उस बिन शौक़ ने हम को बे-हवास किया सुबह तक शमा सर को ढुँढती रही क्या पतंगे ने इल्तेमास किया ऐसे वहाशी कहाँ हैं अए ख़ुबाँ ‘मीर’ को तुम… Continue reading गुल को महबूब में क़यास किया / मीर तक़ी ‘मीर’

दम-ए-सुबह बज़्म-ए-ख़ुश जहाँ शब-ए-ग़म / मीर तक़ी ‘मीर’

दम-ए-सुबह बज़्म-ए-ख़ुश जहाँ शब-ए-ग़म से कम न थी मेहरबाँ कि चिराग़ था सो तो दर्द था जो पतंग था सो ग़ुबार था दिल-ए-ख़स्ता जो लहू हो गया तो भला हुआ कि कहाँ तलक कभी सोज़्-ए-सीना से दाग़ था कभी दर्द-ओ-ग़म से फ़िग़ार था दिल-ए-मुज़तरिब से गुज़र गई शब-ए-वस्ल अपनी ही फ़िक्र मे न दिमाग़ था… Continue reading दम-ए-सुबह बज़्म-ए-ख़ुश जहाँ शब-ए-ग़म / मीर तक़ी ‘मीर’

दिल की बात कही नहीं जाती, चुप के रहना ठाना है / मीर तक़ी ‘मीर’

दिल की बात कही नहीं जाती, चुप के रहना ठाना है हाल अगर है ऐसा ही तो जी से जाना जाना है सुर्ख़ कभू है आँसू होती ज़र्द् कभू है मूँह मेरा क्या क्या रंग मोहब्बत के हैं, ये भी एक ज़माना है फ़ुर्सत है यां कम रहने की, बात नहीं कुछ कहने की आँखें… Continue reading दिल की बात कही नहीं जाती, चुप के रहना ठाना है / मीर तक़ी ‘मीर’

न सोचा न समझा न सीखा न जाना / मीर तक़ी ‘मीर’

न सोचा न समझा न सीखा न जाना मुझे आ गया ख़ुदबख़ुद दिल लगाना ज़रा देख कर अपना जल्वा दिखाना सिमट कर यहीं आ न जाये ज़माना ज़ुबाँ पर लगी हैं वफ़ाओं कि मुहरें ख़मोशी मेरी कह रही है फ़साना गुलों तक लगायी तो आसाँ है लेकिन है दुशवार काँटों से दामन बचाना करो लाख… Continue reading न सोचा न समझा न सीखा न जाना / मीर तक़ी ‘मीर’

उलटी हो गई सब तदबीरें, कुछ न दवा ने काम किया / मीर तक़ी ‘मीर’

उलटी हो गई सब तदबीरें[1], कुछ न दवा ने काम किया देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया अह्द-ए-जवानी[2] रो-रो काटा, पीरी[3] में लीं आँखें मूँद यानि रात बहुत थे जागे सुबह हुई आराम किया नाहक़ हम मजबूरों पर ये तोहमत है मुख़्तारी[4] की चाहते हैं सो आप करें हैं, हमको अबस[5] बदनाम किया… Continue reading उलटी हो गई सब तदबीरें, कुछ न दवा ने काम किया / मीर तक़ी ‘मीर’

पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है / मीर तक़ी ‘मीर’

पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है जाने न जाने गुल ही न जाने, बाग़ तो सारा जाने है लगने न दे बस हो तो उस के गौहर-ए-गोश के बाले तक उस को फ़लक चश्म-ए-मै-ओ-ख़ोर की तितली का तारा जाने है आगे उस मुतक़ब्बर के हम ख़ुदा ख़ुदा किया करते हैं कब मौजूद् ख़ुदा को वो… Continue reading पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है / मीर तक़ी ‘मीर’

इब्तिदा-ऐ-इश्क है रोता है क्या / मीर तक़ी ‘मीर’

इब्तिदा-ए-इश्क़[1] है रोता है क्या आगे-आगे देखिये होता है क्या क़ाफ़िले में सुबह के इक शोर है यानी ग़ाफ़िल[2] हम चले सोता है क्या सब्ज़[3] होती ही नहीं ये सरज़मीं तुख़्मे-ख़्वाहिश[4] दिल में तू बोता है क्या ये निशान-ऐ-इश्क़ हैं जाते नहीं दाग़ छाती के अबस[5] धोता है क्या ग़ैरते-युसूफ़ है ये वक़्त ऐ अजीज़… Continue reading इब्तिदा-ऐ-इश्क है रोता है क्या / मीर तक़ी ‘मीर’

जो इस शोर से ‘मीर’ रोता रहेगा / मीर तक़ी ‘मीर’

जो इस शोर से ‘मीर’ रोता रहेगा तो हम-साया काहे को सोता रहेगा मैं वो रोनेवाला जहाँ से चला हूँ जिसे अब्र[1] हर साल रोता रहेगा मुझे काम रोने से हरदम है नासेह[2] तू कब तक मेरे मुँह को धोता रहेगा बसे गिरया[3] आंखें तेरी क्या नहीं हैं जहाँ को कहाँ तक डुबोता रहेगा मेरे… Continue reading जो इस शोर से ‘मीर’ रोता रहेगा / मीर तक़ी ‘मीर’

जीते-जी कूचा-ऐ-दिलदार से जाया न गया / मीर तक़ी ‘मीर’

जीते-जी कूचा-ऐ-दिलदार से जाया न गया उस की दीवार का सर से मेरे साया न गया दिल के तईं आतिश-ऐ-हिज्राँ से बचाया न गया घर जला सामने पर हम से बुझाया न गया क्या तुनक हौसला थे दीदा-ओ-दिल अपने आह इक दम राज़ मोहब्बत का छुपाया न गया दिल जो दीदार का क़ायेल की बहोत… Continue reading जीते-जी कूचा-ऐ-दिलदार से जाया न गया / मीर तक़ी ‘मीर’